SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिंगं न च वयः प्रादमी गुणों के कारण पूज्य बनता है किसी लिंग प्रथवा प्रायु के कारण नहीं। उन्होंने 'बुद्ध' वा वर्धमान शतदलनिलयं केशवं वा 'ब्रह्मा वा विष्णुव हरोजिनो वा नमस्तस्मै का शखनाद दिय सम्प्रदायवाद का उन्होंने बड़े जोर से खण्डन किया । उन्होंने मानव को विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता दी तथा दूसरों से इस सम्बन्ध में सहिष्णु होने को कहा। उन्होंने सत्य की खोज में विभिन्न दृष्टिकोणों को पूर्ण महत्व दिया। उन्होंने कहा कि जिस दृष्टिकोण से तुम अपने आप को सत्यमार्ग पर समझते हो दूसरे दृष्टिकोण से विचार करने पर यह गलत भी हो सकता है प्रत: अपने ही दृष्टिकोण पर डटे रहने का आग्रह मत रखो, दूसरों की भी सुनो और समझो । शिवं वा तथा जातिवाद तथा उनका पहिंसा का सिद्धान्त मानव को परिधि को भी लांघकर जीवमात्र तक पहुंचता है। हिंसा की जो पूर्ण व्याख्या उन्होंने प्रस्तुत की उसकी प्राप्ति अन्यत्र दुर्लभ है। अनावश्यक संग्रह को उन्होंने हिंसा का ही रूप बताया । आज के वैज्ञानिक एवं तर्क प्रधान युग में उनके सिद्धांत कसोटी पर पूरे खरे उतरते हैं और जैसा कि उच्च न्यायालय दिल्ली ने अपने निर्णय में कहा है भगवान महावीर का सन्देश श्राज भी उतना ही उपयुक्त और महत्वपूर्ण है जितना कि वह उनके स्वयं के समय में था "The message of a great person like Bhagwan Mahavir is as relevant of to day as it was in his Mahavir was one of the great figures of Indian History. भगवान् महावीर के सिद्धान्त हमारे धान के संवैधानिक ढांचे के मूलभूत time. अंग है। राजस्वान में परिनिर्वाण वर्ष शान्ति वर्ष के रूप में मनाया गया। पूरे वर्ष के लिए शिकार एवं फांसी को सजा पर प्रतिबंध लगा दिया । पशु पक्षी बलि पर कानूनन रोक लगाकर हिंसा के प्रति पूर्ण निष्ठा व्यक्त की गई। विकलांग बन्धुओं के लिए 5 लाख की राशि से निशुल्क रंग उपलब्ध कराने के लिए भगवान महावीर विकलांग सहायता कोष की स्थापना की गई । राजस्थान में हुए समस्त कार्यक्रम में राजस्थान प्रान्तीय भगवान महावीर 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव महासमिति भग्रणी रही। सम्पन्न समारोह के शुभावसर पर स्मारिका, जिसमें भगवान महावीर जैन दर्शन तथा परिनिर्वाण वर्ष में हुए कार्यों का उल्लेख हो, उसके लिए मुझे प्रबंध सम्पादक मनोनीत कर जो भार डाला उसकी सफलता की जांच तो पाठकगरण ही करेंगे किन्तु यहां मैं उल्लेख करना चाहूंगा कि महासमिति के कार्याध्यक्ष श्री राजरूपजी टांक एवं प्रधानमन्त्री श्री सम्पतकुमारजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy