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________________ जैन धरम साधना रो धरम है। प्रो अनादिकाल सू कलुषित प्रात्मा र अशुद्ध रूप नै दूर कर' र शुद्ध रूप रो प्राप्ति रो मारग बतावै । सापक नै संसार रे बंधण सूमुक्ति हुवण खातर आत्मा री शुद्ध पर अशुद्ध स्थिति पर उणरै कारणां रो ज्ञान जरूरी है । ओ ज्ञान तत्व ज्ञान कही। महावीर रा दर्शन मैं तत्वचिन्तन नौ तत्व: जैन दर्शन में मुख्य तत्व नौ मानीज-(1) जीव (2) अजीव (3) पुण्य (4) पाप () प्रास्रव (6) बंध (7) संवर (8) निर्जरा पर (9) मोक्ष । इणांरो परिचय इण भांत है 1. जीव तत्व। ___ जीव तत्व रो लक्षण उपयोग-चेतना है। जिणमें ज्ञान पर दर्शन रूप उपयोग है, वो जीव है । जीव चेतन पण कहीजै । इणमें सुख-दुख. अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि भावां रै अणभव री समता हुवै। जीव तत्व रा दो भेद हुवे--(1) मुक्त पर (2) संसारी । जो जीव करम मलं सू रहित हुयर शान, दरसन रूप मनन्त शुद्ध चेतना में रमख कर, वो मुक्त पर करमां रै कारण जनम-मरण रूप संसार में मिनख, तियंच, देव पर नारक गतियां में धूमतो रैवे वो संसारी कहीजै । ___ संसारी जीवां मांय सू देव ऊर्ग लोक में, मिनख पर पशु मध्यलोक में अर नारक अघोलोक में निवास करै । मिनख र स्पर्शन (शरीर) रसन (जीभ) घ्राण (नाक) चक्षु (प्रांख) पर श्रोत्र (कान) में पांच इन्द्रियां मन सहित हुवै, इण कारण वो मिनख कहीजै । डॉ. शान्ता भानावत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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