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________________ करुणा रा सागर उण वेला, प्रभु तीन ज्ञान रा धारी हा। पर भरी जवानी राज त्याग, संकल्प स्व-पर उद्धारी हा ॥७॥ एकेला लांबी तपस्या में, विचरचा प्रात्मा रौ ध्यान करयो। बारै वरसां उपसर्ग परीसा, सह, केवल दर्शन-ज्ञान धयो॥८॥ प्रात्मोद्धार करण खातर, सिगला प्राणी है इधकारी । .. बार परखद में आ सुणता, उपदेश तीन गत रा धारी ॥६॥ अनादि काल जड़ संग रातो, अज्ञानी चौरासी भटकै । . कर भेद ज्ञान जड़ चेतन रौ, ज्यू च्यार गति में नहीं अटकै ॥१०॥ सर्वज्ञ प्रभू जगबोध दियो, ताचा लाखू भवि प्राणी नै । त्रिकाल अबाधित अनेकान्त, मय, नमो भंवर जिनवाणी नै ।।११।। दीवाली दिन पावापुर में, निर्वाण हुयो जग तारक रौ। पच्चीस सईका पूरीज्या, ___ हिंवडै में पुन प्रतिष्ठ करौ ।।१२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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