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________________ (ख) जैन दर्शन (ग) जैन- संस्कृति मौर (घ) जैन-युग जैन दर्शन की गणना संसार के प्रधान मोर प्रबुद्ध दर्शनों में की जाती है। उसका भनेकान्तवाद समरसता, विश्वशांति, भ्रातृत्व और मानवप्रेम की रामबाण औषधि है । मध्यकालीन काव्य में महावीर स्वामी : हिन्दी के मध्यकाल में उत्तरार्द्ध में बुन्देलखंड में एक हिन्दी जैन कवि नवलशाह द्वारा रचित 'वर्द्धमान- पुराण' ही एक ऐसी कृति है जिसे प्रबन्ध-काव्य कहा जा सकता है। इसके सम्पादक पं० पन्नालाल साहित्याचार्य ने इसे महाकाव्य प्रौर धर्मशास्त्र दोनों ही रूपों में निरूपित किया है । कवि ने इस महान काव्य ग्रन्थ का निर्माण संवत् 1825 में भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा विरचित संस्कृत ग्रन्थ के आधार पर किया है । इस ग्रन्थ को भारत के मूर्धन्य विद्वान् श्री भगरचन्द नाहटा ने हिन्दी • जगत् से परिचित कराया । प्रस्तुत काव्य 16 अधिकारों में विभक्त है । इसमें दोहा, चौपाई, पद्धडी, छप्पय, चर्चरी, त्रिभंगी आदि सोलह प्रकार के छंदों का प्रयोग मिलता है । सर्वाधिक प्रयुक्त छंद चोपाई है। कुल 3806 पद्यों में से 2966 पद्य चौपाई छंद में है । रचनाकार ने सोलह के महत्व का प्रतिपादन निम्न शब्दों में किया है- ऊर्ध्व लोक षोडस सरगकर, पुण्य लहै अवतार तिन यह षोडस सरगकर, लोनो ग्रन्थहि पार । षोडस कला जु चन्द्रमा, पूरनमासी जान । तिन षोडस अध्यायकर, पूरन भयो पुरान । ज्यों भामिनी उपमा बसे, लहि षोडस शृंगार । यह पुरान अनुपम लर्स, करि षोडस अधिकार । काव्य के प्रथम अधिकार में मंगलाचरण प्रादि मिलते हैं । भगवान् महावीर स्वामी का चरित्र द्वितीय अधिकार से प्रारम्भ होता है जो षष्ठ कार तक प्रवहमान है। इनमें उनके पूर्वजन्म Jain Education International 2-101 के. वृत्तान्तों का उल्लेख है । सप्तम अधिकार में उनके गर्भ में आने, भ्रष्टम में जन्म होने, नवममें बाल्यावस्था तथा वैराग्य की स्थिति भौर दसवें में दीक्षा एवं तपस्या के उल्लेख मिलते हैं । एकादश अधिकार में केवलज्ञान तपस्या तथा समवशरण का वर्णन है । द्वादश में गौतम इत्यादि गणधरों के प्रतिबोध का वर्णन के साथ ही साथ पन्द्रहवें अध्याय तक महावीर स्वामी के उपदेश प्रवचन एवं तत्व-चिन्तन के वर्णन मिलते हैं । अन्तिम सोलहवें अधिकार में महावीर स्वामी के बिहार तथा मोक्ष प्राप्ति के तदनन्तर ग्रंथ की समाप्ति है । उपरिलिखित ग्रंथ के अतिरिक्त मध्यकाल के हिन्दी साहित्य में कोई दूसरा प्रबन्ध काव्य देखने को नहीं मिला । हिन्दी के मध्यकालीन काव्य में भगवान् महावीर स्वामी को लेकर अनेक स्फुट, धार्मिक, भक्ति तथा उपदेशात्मक काव्य लिखे गये । मध्यकाल की सम्बन्धित रचनात्रों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं (क) भगवान महावीर स्वामी से सम्बन्चित रचनाएं । (ख) चोबीस तीर्थंकरों में से एक तीर्थंकर के रूप से सम्बन्धित रचनाएँ । (ग) उनके युग तथा भक्तों से सम्बन्धित रचनाएँ | (क) जैन भक्ति काव्य के ने भगवान् गहावीर स्वामी का अधिकांश कवियों स्मरण किया है । पं० भगवतीदास (वि० स० 1680) ने अपनी कृतियां सम्राट जहांगीर ( सन् 1606 - 1627 ) और सम्राट शाहजहां (1627- 1658) के शासनकाल में लिखी जिनकी कुल संख्या पच्चीस बतायी जाती है। इनकी एक पद्य कृति 'वीर जिनेन्द्र पीत' में भगवान महावीर की स्तुति मिलती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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