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________________ उन खम्भों में एक पर, है श्री धरणा शाह । अधिनायक सन्मुख खड़े, बद्धांजलि सोत्साह ॥14॥ चार बीस गुम्बज सुभग, जिनमें चार विशाल । हर गुम्बज में कोरणी, का है काम कमाल ॥15॥ चैत्यालय सारे वहां, पूरे मस्सी चार । कलापूर्ण कृति देखकर, होता चित्र अपार ॥16॥ रहे मामने सामने, चैत्यालय हर एक । इसी विधि से बाँधे गये, रखकर पूर्ण विवेक ॥17॥ समवशरण का दृश्य भी, है पूरा कमनीय । सहस्रफरणी श्रीपास जिन, नाग-युगल महनीय ॥18॥ नन्दीश्वर का हट सुभग, शत्रुजय का चित्र । एक एक से बढ़ रहे. निखरी कला विचित्र ।।19॥ मूलालय से दाहिने, (है) भैरव भैरव रूप । खड़े भवानी सहित वे, अद्भुत लिए स्वरूप ॥20॥ मुख मंदिर के चौतरफ, चित्रित बावन वीर । योगिनियों की भी वहां, है चौसठ तस्वीर ॥21॥ तोरण इक शत पाठ थे, तीन रहे अवशेष । देख जिन्हों की कोरणी, होता चित्र विशेष ॥22॥ पत्थर को कोरा यहां, अथवा कोरा काठ । बढ़ते चढ़ते ही लगे, एक एक से पाट ।।23। कल्प वृक्ष के पत्र पर, कोरा शशि का रूप । पूर्ण चन्द्रमा की खिली, ज्योत्स्ना बड़ी भनूप ॥24॥ कोत्ति स्तम्भ अपूर्ण ही, कहता है ललकार। महं भाव के वश पड़ा, मानव खाता हार ॥25॥ दो घंटायें हैं लगी, तेरह मन का भार । तीन मील सुनती तुरत, घण्टों का झनकार 126।। नर नारी के शब्द में, ज्यों रहता है फर्क । अन्तर उनके नाद में, हमने सुना सतर्क ।।2711 रायण तक की छांह में, हुमा ऋषभ को ज्ञान । सवा पांच सौ वर्ष का, रायण खड़ा महान् ॥2811 तीन तरफ तो बन गया, चैत्यालय सौत्साह । उभय अधिक सौ वर्ष को, पहुँचे धरणाशाह ॥29॥ देखा ग्यारह खण्ड का, नलिनी गुल्म विमान । कैसे अब पूरे करू, मैं मेरे अरमान ।। 30।। 1. जो कि महारावल के द्वारा बनवाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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