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________________ दक्षिण में कृष्ण और गोदावरी नदियों के बीच में सम्बन्धित एवं उनका नेतृत्व करने वाले थे । स्थित था। यह मत समीचीन प्रतीत होता है। प्रारम्भिक दिनों में उन्होंने साम्राज्य निर्माण में सातवाहनों की महत्वपूर्ण सहायता की थी। । शासन के तीसरे वर्ष में गन्धर्वशास्त्रविद खारवेल इसीलिए सातवाहन नरेशों ने उन्हें महाभोज मोर ने नाटक, नृत्य, गीत, वादित्र के प्रायोजनों के द्वारा महारठी की महत्वपूर्ण उपाधियां दी। ये उपाधियां उत्सव एवं समाज की योजना कराकर नगरी को कुछ निश्चित परिवारों और निश्चित प्रदेशों मानन्दित किया। में परम्परागत रूप से प्रचलित हो गयीं। इनका चौथे शासनवर्ष में उसने विद्याधर पावास नामक प्राधिक्य महाराष्ट्र के थाना और कोलाबा जिलों में भवन की मरम्मत करायी और राष्ट्रिकों तथा था।18 भोजकों पर विजय प्राप्त की। राष्ट्रिकों और इस युद्ध के संदर्भ में विद्याधरों को राजधानी भोजकों का अभिज्ञान क्रमशः सातवाहन अभिलेखों का उल्लेख हुप्रा है। कुमारगुप्तकालीन मथुरा जन और उसी युग के कन्हेरी, कुड़ा और बेउसा के लघु मूर्तिलेख19 से ज्ञात होता है कि विद्याधर जैनियों लेखों में उल्लिखित महारथियों और महाभोजकों से की एक शाखा थी । प्रतीत होता है कि जैन धर्मावकिया गया है। अशोक के पांचवें शिला प्रज्ञापन के लम्बी खारवेल ने विद्याधर सम्प्रदाय के जैनियों की गिरनार पाठ में रिस्टिकों. शाहबाजगढी में रथिकों सुरक्षा के लिये ही यह आक्रमण किया था । और म.नसेहरा में रथकों का नाम पाया है। प्रस्तुत लेख में विद्याधरों की राजधानी के उल्लेख इसी प्रकार धौली पाठ में उपयुक्त पाठों से मिलता- से प्रतीत होता है कि यह स्थान एक बड़ा जैन तीर्थ जुलता ठिक शब्द मिलता है। प्रशोक के तेरहवें था जिसे भोजकों तथा रठिकों से कछ खतरा उत्पन्न शिला प्रज्ञापन के शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा और हो गया था। खारवेल ने इस तीर्थ की रक्षा करना कालसी पाठों में भोजकों का उल्लेख पितनिकों के अपना विशेष उत्तरदायित्व समझा। सभवतः इसी साथ हुमा है । विण्डकड़ चुटकुलानन्द कालीन कन्हेरी अभिप्राय से उसने यह सैन्य अभियान किया। गुहालेख में एक महाभोज को महाराजा कहा गया है। इस तथ्य से प्रमाणित होता है कि भोज एक शासन के पांचवें वर्ष में खारवेल ने तनसुलि प्रकार का विरुद था। कुड़ा गुहा से प्राप्त पांच नामक स्थान से प्रपती राजधानी तक एक नहर का अतिपरक अभिलेखों में महाभोजों एवं महाभोजियों जीर्णोद्धार कराया। इस नहर को नन्दराज ने का उललेख है। पल्लव नरेश शिवस्कन्दवर्मा के 300 वर्ष पूर्व बनवाया था। विवेच्य ममिलेख में एक ताम्रपत्र में भोजक का नाम मिलता है। नन्द गज का नाम दो बार माया है --पहला पंक्ति महारठी और महाभोज प्रशासनिक पद थे जिनका छह में मोर दूसरा पंक्ति बारह में । छठवीं पंक्ति में स्थान राजा के बाद दूसरे नम्बर पर था । प्रारम्भ दी गई तिथि निस्सन्देह राजा नन्द द्वारा प्रवत्तित में रथिक और भोज वस्तुत: विशेष जातियों से किसी संवत् का उल्लेख करती है। मगध के संदर्भ में 17. हिन्दू-पालिटी खण्ड 1, पृ. 143 और 195 18. भण्डारकर, अशोक, पृ० 29-31; वेदालंकार, प्राचीनभारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, पृ० 249-50 19. एपि० इण्डि०, खण्ड 2, पृ० 210 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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