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________________ 2-32 मूर्तियां प्रदर्शित हैं जो सभी जैन हैं ( इसमें 9 स्थित प्रतिहार कालीन सूर्य मन्दिर के पिछले वाह्य अभिलेख युक्त हैं तथा इनमें 6 तिथियां भी अंकित मंडोवर भाग पर पार्श्वनाथ की मूर्ति का अंकन हैं जो वि0 सं0 1063 से 1150 के मध्य हैं । इसी धार्मिक सहिष्णुता का परिचायक है । 22वें ये अधिकांश तीर्थंकरों की एकतीर्थी, त्रितीर्थी व तीर्थंकर नेमिनाथ को कृष्ण का चचेरा भाई जैनपंचतीर्थी मूर्तियां हैं जिनमें प्रादिनाथ व पार्श्वनाथ साहित्य में माना गया है जिन्होंने महाभारत के प्रमुख हैं । एक धातु मूर्ति चतुर्मुख समवसरण को युद्ध में सक्रिय रूप से भाग लिया । कंकाली टीले. अंकित करती है तथा वि0 सं0 1136 की अभि- से प्राप्त एवं मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित कई लेख युक्त पट्टे पर चतुर्विशति तीर्थंकरों का प्रकन कुषाण कालीन प्रतिमानों में पार्श्व देवता के रूप में है। अमरसर से प्राप्त एक फुट ऊंची नर्तकी की कृष्ण-बलराम को देखा गया है तथा प्रमुख देवता धातु मूर्ति उत्कृष्ट कला का अन्यतम उदाहरण है। के रूप में भगवान नेमिनाथ का अंकन हुआ है। जोधपुर के राजकीय संग्रहालय में सांचोर (जिला आबू के विमलवसही में कालियदमन, चाणूरवध, जालोर) व परबतसर (जिला नागोर) से मिली तथा लूणवसही में कृष्ण जन्म, दधि-मंथन, रास जेल धातु मूर्तियां भी उल्लेखनीय हैं । सांचोर से लीला प्रादि के दष्य विद्यमान है, खजुराहो के पार्श्वप्राप्त पदुमासनस्थ प्रादिनाथ की धातुमूर्ति 8 वीं नाथ मन्दिर में यमलार्जुनोद्धार का दृष्य उत्कीर्ण है, शताब्दी की महत्वपूर्ण कलाकृति है । सांचोर सांगानेर (जयपुर) के सिंघी जैन मन्दिर (16वीं की धातु प्रतिमानों पर वि0 सं0 1262 से 1649 शताब्दी) के स्तम्भों पर रास लीला एवं कृष्ण के तथा परबतसर की धातु मूर्तियों पर वि० सं० विभिन्न रूपों का अंकन इसी परम्परा में हुआ है। 1234 से 1599 की अवधि के दान-परक लेख हिन्दू देव-परिवार को जिस रूप में जैन धर्म सत्कीर्ण हैं। में प्रात्मसात् कर लिया गया-वह भी कम रोचक - राजस्थान की जैन मूर्तिकला-धार्मिक सहिष्णुता नहीं है । जैन कुबेर की प्रतिहारकालीन प्रतिमा की भावना का मूर्त रूप है । यहां विभिन्न मेवाड़ के बांसी ग्राम से प्राप्त हुई है जो उदयपुर धर्मों व सम्प्रदायों में धार्मिक कटुता एवं प्रतिस्पर्धा संग्रहालय में प्रदर्शित है । समकालीन जैन साहित्य का प्रभाव था। मेवाड़ में केसरियाजी तथा बाड़मेर द्वारा भी राजस्थान में यक्ष-पूजन सुस्पष्ट है। में नाकोड़ा जी सभी के पूज्य है। नाडोल (पाली) चित्तौड़ निवासी प्राचार्य हरिभद्रसूरि द्वारा रचित से चौहान राजपूत कीर्तिपाल के वि0 सं0 1218 'समराइच्चकहा' (6वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध) में यक्ष के ताम्रपत्र का प्रारम्भ करते हुए मंगलाचरण में धनदेव (कुबेर ?) का उल्लेख है तथा जालोर में ब्रह्मा (ब्रह्म), विष्णु (श्रीधर) व शिव (शंकर) को उद्योतनसूरि द्वारा लिखित 'कुवलयमाला कथा' जैन-जगत में प्रसिद्ध कहा गया है । मागे लेख हैं (778 ई.) में जैनों द्वारा पूजित कुबेर प्रतिमा का कि सोमवार श्रावण वदि 6 सम्वत 1218 को संकेत है । जैन धातु प्रतिमाओं पर कुबेर पम्बिका नाडोल में कीर्तिपाल ने स्नान करके, धुले हुए वस्त्र व नवग्रह का प्रायः प्रकन मिलता है। वाग्देवी घारण कर, देवताओं का विधिवत् तर्पण कर, सूर्य सरस्वती जैन सम्प्रदाय में बहुत ही लोकप्रिय थी। की पूजाकर, शिव को अभिवादन कर-नारलाई के पल्लू (गंगानगर) से प्राप्त दो जैन सरस्वती 11 ग्रामों में से प्रत्येक ग्राम से नारलाई के महावीर प्रतिमाएं क्रमशः राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में मन्दिर को 2 द्रम्म दिलवाने की व्यवस्था की । बीकानेर संग्रहालय में प्रदर्शित हैं जो चाहमानऔसियां के सच्चिका माता मन्दिर के प्रांगण में कालीन महत्वपूर्ण कलाकृतियां हैं । विमलवसही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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