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________________ 2-31 उत्माह' की रचना की उसमें उल्लेख है कि महमूद है। इस मण्डप में जो सुन्दर सरस्वती की मूर्ति है गजनवी के प्रकोप का शिकार श्रीमाल (सिरिमाल- उसके दाहिने पोर हाथ जोड़े सूत्रधार लोयण तथा भीनमाल), अनहिलपुर पाटन (अणहिलवाड ). बाये पोर गजधारण किये सूत्रधार केला अंकित चन्द्रावती (चड्डावली), सोरठ (सौराष्ट्र), देलवाड़ा हैं। लोयण प्रौर केला विमलवसही के सुन्दर ( देउलवाड़-माबू पर्वत) सोमनाथ (सोमेसरू- विश ल मण्डप और उसकी पद्म-लम्बक युक्त छत के सोमेश्वर) के मन्दिर बने जिन्हें उनके धर्मान्ध प्रमुख निर्माता कलाकार रहे होंगे । वि०सं० 1287 सैनिकों ने ध्वस्त किया, परन्तु केवल मात्र श्रीसत्यपुर में देलवाड़ा के संसार-प्रसिद्ध वस्तुपाल-तेजपाल मथवा साचोर (सिरि सच्चउरि) का महावीर द्वारा निर्मित लूणवसही का निर्माण सूत्रधार मन्दिर ही बच रहा । शोभनदेव के निर्देशन में हमा। राजस्थान के विभिन्न संभागों में यत्र-तत्र गौड़वाड़ प्रदेश में नाणा, नारलाई, नाडोल, बिखरी जैन मूर्तियाँ व प्राचीन मन्दिर-पाज भी घाणेराव, बरकाना, सादड़ी; पाली; जैसलमेर में अपनी गौरव गाथा एवं कलात्मक-समृद्धि का निदर्शन किले व लुद्रवा; बाड़मेर किले में नाकोड़ाजी व करने हेतु बच रहे हैं । प्रोसियां (जोधपुर) के जूना पतरासर; बीकानेर में चिन्तामणि, नमिनाथ महावीर मन्दिर का मूलतः निर्माण प्रतिहार नरेश व मांडासर; जोधपुर में प्रौसियां, गंगाणी, झंवर, वत्सराज के राजस्म (783 ई० 795 ई०) में 8वी तिवर्ग, कापरड़ाजी प्रादि के जैन मन्दिर और शताब्दी में हुआ परन्तु जिन्द रु द्वारा विशाल स्तर उनका समृद्ध मूर्तिकला-भारतीय कला की गौरवपर वि. सं. 1013 में जीर्णोद्धार कर 'वलाणक' पूर्ण निधियां हैं । बना । वि. सं. 1073 में तोरण निमित हुप्रा । रोहिन्सकूप (घटियाला-जोधपुर) में वि. सं. 918 धातु मूर्तिकला के क्षेत्र में पश्चिमी राजस्थान में मण्डोर की प्रतिहार शाखा के नरेश कक्कुक की जैन मूर्तियों का विशिष्ट योगदान है। राजस्थान ने अम्बिका युक्त जैन मन्दिर का निर्माण किया जा में जैन धातु मूर्तियां-जितनी विशाल संख्या में 'माताजी की साल' रूप में आज भी विद्यमान है । प्राप्त हैं-यह माश्चर्यजनक है। ये धातु मूर्तियां बीजापुर-हथूडी के पुराने महावीर मन्दिर का 8वीं शताब्दी से अनवरत रूप से निर्मित होती जीर्णोद्धार किया जाकर वि. सं. 1053 में प्रथम रहीं । सिरोही के वसन्तगढ़ और अजारी; मारवाड़ तीर्थकर का अति सुन्दर मन्दिर बना जिसमें ऋषभ- के सांत्रोर, परबतसर, जालोर, रामसेन, सिवाना; देव की प्रतिष्ठा शान्त्याचार्य द्वारा की गयी। बीकानेर के अमरसर तथा चिन्तामणि मन्दिर की देलवाड़ा (प्राबू पर्वत) के विश्व-विख्यात प्रादिनाथ धातु मूर्तियां; जैसलमेर किले व लुद्रवा में सुरक्षित मन्दिर का निर्माण वि० सं० 1088 में मन्त्री धातु मूर्तियां, जयपुर में भामेर व सांगानेर के जैन विमल द्वारा कराया गया परन्तु महमूद गजनवी मन्दिरों में सुरक्षित धातु प्रतिमाएं -समृद्ध कला की द्वारा क्षतिग्रस्त किये जाने पर उसका विशाल स्तर परिचायक हैं । वसन्तगगढ़ (सिरोही) से प्राप्त दो पर जीर्णोद्धार वि० सं० 1204 में विमलशाह के जैन धातु मूर्तियों पर वि० सं० 744 के अभिलेख वंशज पृथ्वीपाल ने कराया, जो चौलुक्य नरेश उत्कीर्ण हैं और उन्हें बनाने वाले शिल्पी शिवनाग कुमारपाल के मन्त्री थे । इस अवसर पर विमल- को साक्षात् ब्रह्मा की भांति सर्व प्रकार के रूपों वसही में विशेषतः एक नया मण्डप बना जिसको (मूर्तियों) को निर्मित करने वाला कहा गया है । छत में सुन्दर पद्म-लम्बक (Lotus-Pendant) बीकानेर संग्रहालय में अमरसर से प्राप्त 14 घातु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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