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________________ 2-23 के चार दिकारी के बाहर आदर्श विस्तर भंडार ठानी। सेठ परिवार इस पर अपना अपमान कर्मचारियों के आवास गृह, चिकित्सालय, प्राधुनिक समझकर इस स्थान को छोड़कर जैसलमेर एवं होटल, गोशाला, सुन्दर बगीचा भी बना हुआ है। बाड़मेर की ओर चल दिया। यह घटना 17 वीं मन्दिरों की इस नगरी में मूल मन्दिर की सूरजपोल शताब्दी की थी। इस घटना से सम्पूर्ण जैन के सामने भाखरी पर श्री जिनदत्तसूरि की चरण समाज यहां से चले जाने से तीर्थ की व्यवस्था पादुकाओं की सुन्दर छतरी बनी हुई है। जहां खटाई में पड़ गई। करीबन दो सौ से अधिक वर्षों तक नवनिर्मित सीढ़ियों बन जाने से प्राने जाने तक इस तीर्थ का बहुमुखी विकास रुक गया लेकिन में सुविधा हुई है। इसके नीचे एक तरफ भैरव साध्वी श्री सुन्दरश्री जी ने यहां आकर इसके बन्धा बना हुआ है। जिसके आगे की भाखरी चहुंमुखी विकास में जी जान की बाजी लगा दी। पर श्री कीर्तिरत्नसूरि, श्री जयसागरसूरि एवं जिसके परिणामस्वरूप प्राज श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ श्री कृपासागर की चरणपादुकाएं लिये छतरी उन्नति के शिखर पर है। बनी हुई हैं। श्री जिनदत्तसूरि छतरी के पीछे और श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ की यात्रा के श्री कीतिरत्नसूरि छतरी के आगे बिखरे खण्डहरों लिये जोधपुर-बाड़मेर रेल मार्ग के बालोतरा को बस्ती एवं कुछ टूटे फूटे मन्दिर आज भी स्टेशन पर उतरना पड़ता है। बालोतरा से प्राचीन वैभव, शिल्पकला एवं इतिहास का स्मरण नाकोड़ा सात मील पक्की सड़क मार्ग से जुड़ा हुमा करवा रहे हैं। नाकोड़ा मन्दिर के पीछे 1200 है वहां प्रतिदिन दो बसों का नियमित रूप से पाना फीट की ऊंची पहाड़ी पर सेलावत तालाब के जाना होता है ! मेले के दिनों में बस यातायात किनारे श्री नेमिनाथ भगवान की चरण पादुका का तांता लगा ही रहता है। बालोतरा-नाकोड़ा एक छतरी में विराजमान हैं जिसके नीचे श्री तक टेलीफोन व्यवस्था भी है। मरूधरा के रेतीले जिनक शलसूरि की चरण पादुकाएं एक छतरी में भूभाग में यह तीर्थ न केवल राजस्थान की प्राचीन. बनी हुई है। यहां पहुंचने के लिये पक्की सीढियों ऐतिहासिक जानकारी का केन्द्र ही है अपितु का निर्माण किया हुअा है। पुरातत्व जिज्ञासुओं का मुख्य आकर्षण एवं श्रद्धालु प्राकृतिक थपेड़ों, मुगल शासकों की प्राक्रमण भक्तों का पतित पावन तरण तारण तीर्थ स्थल नीति के अतिरिक्त इस तीर्थ की विनाश की एक भी है। करुण कहानी भी रही है। सेठ मालाशाह संखलेचा के कल के श्री नानक संखलेचा की स्था भूरचन्द जैन नीय शासक पुत्र ने उनकी लम्बी एवं सुन्दर चोटी जूनी चौकी का बास काटकर अपने घोड़े के लिये चाबुक बनाने की बाड़मेर-राजस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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