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________________ 2-29 मण्डप. सभा मण्डप, नव चौकी, शृंगार चौकी, भारत-पाक विभाजन के समय सिन्ध प्रदेश के झरोखे बने हुए हैं जो साधारण से हैं जिन्हें अब हालानगर से प्राई प्रतिमाओं का सुन्दर चौमुखी संगमरमर पाषाणों को बारीको शिल्पकलाकृतियों मन्दिर नोचे भूमिगृह, सामने दो देव छतरियां से सजाया जा रहा है। मन्दिर में प्रतिष्ठित तेईस वनी हई है। इस मन्दिर में सं० 1512, 1562, इञ्च की श्यामवर्णी श्री पार्श्वनाथ स्वामी की 1632 एवं 1647 के प्राचीन शिलालेख विभिन्न भव्य प्रतिमा है जिसके आजूबाजू श्वेत संगमरमर स्थानों पर दृष्टिगोचर होते हैं। यह मन्दिर की दो उसी साइज की श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा लाछीबाई देरासर के नाम से भी पहचाना विराजमान हैं। मूल मन्दिर तीन दरवाजों में जाता है । प्राया हुआ है। मन्दिर से तीर्थोद्धारक प्राचार्य इस तीर्थस्थान का तीसरा मुख्य मन्दिर श्री श्री कीतिरत्नसूरि की पीले पाषाण की प्रतिमा शान्तिनाथ प्रभु का है। जिसका निर्माण सुखमाविराजमान है जिस पर सं0 1536 का लेख भी लीसी गांव के सेठ मालाशाह संखलेश ने अपनी विद्यमान है । इनके सामने तीर्थ अधिष्टायक देव माता की इच्छा पर सं० 1518 में करवाया था । श्री भैरव जी की सुन्दर, कलात्मक एवं आकर्षक मूल श्री शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा इसमें प्रतिष्ठित प्रतिमा प्रतिष्ठित है। जिनके चमत्कारों से इस करने से यह मन्दिर श्री शान्तिनाथ मन्दिर एवं तीर्थ की दिनों दिन ख्याति हो रही है। पास में मालाशाह मन्दिर के नाम से विख्यात हो गया । जैन पचतीर्थी, प्रतिमाओं की शाल एवं दो भूमिगृह इसका निर्माण मालाशाह की बहन लाछीबाई भी बने हुए हैं। इस मन्दिर की पंचतीर्थी में द्वारा बनाये श्री ऋषभदेव मन्दिर के 6 वर्ष बाद प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा सम्प्रति राजा द्वारा निर्माण में करवाया। मन्दिर में माउण्ट आबूके देलवाड़ा की हुई है। मन्दिर में निर्माण सम्बन्धी सं० जैन मन्दिरों की भांति सुन्दर शिल्पकला है। 1638, 1667, 1678, 1682, 186 एवं मन्दिर विशाल है जिसके चारों किनारों पर चार 1865 के प्राचीन शिलालेख भी मयूद है। देवलियां, एक भूमिगृह भी इसकी शोभा बनाये हुये श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जिनालय के पीछे कुछ है। मन्दिर में काउसम्ग प्रतिमानो पर सं0 1202 ऊंचाई पर वर्तमान श्री आदेश्वर भगवान का का लेख सबसे प्राचीन है । सं० 1518, 1604, शिल्पकलाकृतियों का खजाना लिए हर जिन 1614, 1666 एवं 1910 के प्राचीन निर्माण मन्दिर विद्यमान है। इस मन्दिर का निर्माण एवं प्रतिष्ठा सम्बन्धी लेख विद्यमान हैं। वीरमपुर की रहने वाली एवं सेठ मालाशाह की इन जैन मन्दिरों की बस्ती विशाल तीस फीट बहन लाछी बाई ने करवा कर इसकी ऊंची चारदिवारी में आई हुई है। जिसमें सैकड़ों प्रतिष्ठा सं० 1512 में करवाई। उस समय मूल आवास हेतु सुन्दर एवं सुविधाजनक कमरों का प्रतिमा के रूप में श्री विमलनाथ स्वामी की प्रतिमा निर्माण किया हुआ है। इस चार दिवारी में थी लेकिन अब मूलनायक के रूप में श्वेतवर्ण की भोजनशाला, पुस्तकालय, बड़ी व छोटी पेढ़ी, संध राजा सम्प्रति के काल में बनी हुई श्री ऋषभदेव सभा मंडप, मोदीखाना, बिस्तर-वर्तन स्टोर, पानी भगवान की प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर की का कुआं, आदि माये हुये हैं । इसके अतिरिक्त विशाल शिखर पर बनी विभिन्न प्राकृतियों की वैष्णव धर्मावलम्बियों का सं० 1689 में राव सुन्दर प्रतिमाएं शिल्पकला के बेजोड़ नमूने हैं। जगमाल का बनाया श्री रणछोड़ मन्दिर माया मन्दिर के सभी मण्डप एवं उनके शिखर मन्दिर हुआ है । एक महादेव का श्री भैरव भोजनशाला · को सुन्दरता में चार चांद जड़े हुए हैं। के समीप साधारण बना हुआ मन्दिर है। मंदिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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