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________________ 2-18 सूत्र आदि सुख्यात श्वेताम्बरीय मागम-ग्रन्थों पर जैनागमों की भाषा अर्द्धमागधी मानी जाती है। दस नियुक्तियां (टीकाएं) लिखी हैं। नियुक्ति प्रर्द्धमागधी के 'मागधी' शब्द से संकेतित है कि ग्रन्थ जैन आगमों का मर्म तो बतलाते ही हैं, जैन जैनागमों की भाषा बिहार के मगध की ही भाषा दर्शन में प्रतिपादित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म थी। मगध का जैन संस्कृति के प्रति अनुराग इस अाकाश और काल इन छह द्रव्यों के स्वरूप तथा बात से भी स्पष्ट है कि यह जैन मूर्तियों का प्राचीन उनके विश्लेषक प्रमाण और नय का विशद विवेचन काल से ही पूजक रहा है । पटना के लोहानीपुर से भी उप-स्थापित करते हैं। इसके अतिरिक्त, इन प्राप्त दो मौर्यकालीन मूर्तियां (पटना संग्रहालय में नियुक्तियों में ईश्वर के सृष्टिकर्तृत्व की मीमांसा सुरक्षित) इस बात के बहिःसाक्ष्य हैं । निश्चय ही, भी की गई है। अनीश्वरवादियों द्वारा की गई बिहार की वैविध्य-वैचित्र्य से भरी हुई भूमि पर ईश्वरवादी विचारकों के लिये अतिशय और अनिवार्य घटित इतिहास की बहुकोणीय घटनामों से यह महत्व रखती है। सिद्ध है कि बिहार जहां जैनों की पुण्य भूमि है. वहीं वह जैन धर्म की सृष्टि और स्थिति भूमि बिहार में मगवराज्य सर्वाधिक उल्लेख्य है। भी है। मुकक -श्री हजारीलाल जैन 'काका बुन्देलखण्डी' सकरार जिस चेतन ने जड़ पत्थर को वीतराग भगवान बनाया, लेकिन स्वयं राग में फंसकर अपने ऊपर दृष्टि न लाया। पर में फिरा खोजता जिसको हर तीरथ पर शीस झुकाया, 'काका' खुद में खुदा बसा पर खुद को खुद पहिचान न पाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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