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________________ साम्य रखते हैं पर अर्थ में एक रूपता नहीं रही पौर तीसरे भेद में तो नाम साम्य भी नहीं है । अनुयोगद्वार के आधार पर इनकी व्याख्या इस प्रकार होती है : 1- पूर्ववत् में बचपन में कहीं खोए हुए पुत्र को युवावस्था प्राप्त होने पर किसी चिन्ह के द्वारा माता उसे पहचान लेती है ।" उसे पूर्ववत् कहते हैं । जैसे किसी क्षत, वरण, लक्षण, मश या तिल को देखकर निर्णय कर लेना कि यह मेरा ही पुत्र है । 2- - शेषवत् शेषवत् अनुमान पांच प्रकार का है, कार्य, कारण, गुरण, अवयव श्रौर आश्रय | 1. कार्य से कारण का अनुमान - शब्द सुनकर शंख का अनुमान करना, हिनहिनाने से घोड़े का ज्ञान करना । 2. कारण से कार्य का ज्ञान-तन्तुओं से पट का ज्ञान करना, मिट्टी से घड़े का ज्ञान करना और काले बादलों से वर्षा का मनुमान करना । J 3. गुण से गुणी का अनुमान — निकष पर कसने से सोने का ज्ञान करना और गन्ध से फूलों का ज्ञान करना । 4. अवयव से अवयवी का ज्ञान-श्रृंग से महिष का ज्ञान करना, विषारण से हाथी का, नखों से व्याघ्र का धौर वालाग्र से चमरी गो का ज्ञान करना । 6. श्राश्रय से श्राश्रयी का अनुमान - धूम से for का बोध करना, प्रभ्रविकार से वर्षा का अनुमान लगाना मौर शील गुण तथा सदाचार से सुपुत्र का बोध करता । Jain Education International 4-141 3- बुष्ट साधर्म्य पूर्व उपलब्ध अर्थ के साधर्म्य से वर्तमान में किसी को जानना । इसके दो भेद हैं । सामान्य दृष्ट और विशेष दृष्ट | 1. सामान्य दृष्ट - एक पुरुष को देखकर श्रनेक पुरुषों का ज्ञान करना और अनेक पुरुषों के साधर्म्य से एक पुरुष को जानना । 7. 2. विशेष दृष्ट - किसी पूर्व दृष्ट पुरुष को परिषद् के बीच में पहचान लेना । बहुत से रुपयों में पूर्व परिचित कार्षापण को पहचान लेना । अनुमान का ग्रहरण तीन प्रकार से होता हैअतीत काल ग्रहरण, वर्तमान काल ग्रहण और भविष्य काल ग्रहण ----- 1. अतीत काल ग्रहण - उगे हुए तृणों को देखकर कहना वृष्टि हुई थी, शस्य श्यामला पृथ्वी मोर जल परिपूर्ण सरोवर वृष्टि के कार्य हैं । 2: वर्तमान काल ग्रहण - गोचरी के लिए गया हुआ मुनि गृहस्थों द्वारा विशेष भोजन, पानी आदि का आग्रह देखकर सोचता है, अभी सुभिक्ष्य है। 3. अनागत काल ग्रहण - सविद्यत मेघ आदि प्रशस्त हेतुनों को देख कर कहना वृष्टि होगी । इनके विपर्यास में निस्तृण पृथ्वी और शुष्क प्रवृष्टि, भिक्षा सुलभ न होने पर दुर्भिक्ष सरों से और स्वच्छ प्रकाश से भविष्य में वृष्टि नहीं होगी ऐसा अनुमान किया जाता है । इस विवेचन से लगता है कि अनुमान का यह अपूर्व रूप जैनों का अपना दृष्टिकोण है । नैयायिकों ने अनुमान के जो तीन भेद किए हैं, वे इसी विश्लेषरण का संक्षेपीकररण है । क्योंकि उन तीनों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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