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________________ 1-117 काल बाहर किया। यह शक्ति थी सत्यं की, अमेरिका में वियतनामी समर्थक जनमत उठ खड़ा अहिंसा, की आत्मा की। वह शक्ति था मनोबल हुमा। यही बात यहूदियों के साथ थी और यही की। इसी शक्ति ने गत भारत-पाक युद्ध के दौरान बांगला वासियों के साथ । अपनी संस्कृति, अपनी प्रणं शक्ति से लैस अमेरिका के शक्तिशाली सातवें भूमि और अपनी कोम की रक्षा के लिए प्रतिकार बड़े का मुंह फेर दिया था । यही शक्ति बहादुर अथवा हथियार उठा कर चुनौती को स्वीकार करना वियतनामियों के पास थी और यही इजराइल के हिंसा नहीं, अलबता न उठाना कायरता है। विश्व पास । वही पड़ोसी क्यूबा के पास है । वही मनो- के प्राणियों को सबसे पहले इसका ज्ञान भान बस सत्य के हामी भारत के सैनिकों और बांगला कराया था भगवान बाहुबलि ने उसके बाद भगवान वासियों के पास था, जिन्होंने एक लाख कंक पाक राम ने और पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण फौजियों को हथियार डालने के लिए मजबूर कर ने । जिसके पास यह बल होगा वही मजेय है। दिया था। उसे न अणु बम का भय है पोर न उद्धन बम का और न ही उसे किसी के मागे हाथ पसारना वह इन देशों का दृढ़ संकल्प ही था जिसने पड़ेगा। अपने से कही ज्यादा बड़े और शक्तिशाली विरोधियों से उन्हें अपनी रक्षा ही नहीं, जीत दिलाई। लेकिन हम मारका लेकिन हम मारकाट और हनन का रास्ता दृढ संकल्प पैदा होता है प्रात्मबल से सत्य जिसका छोड़ भी दें, भले ही हम हिंसा के इन उपकरणों माधार होता है । आप पूछोगे कि क्या अरबों, को समुद्र में फेंक दें तथा हमारे पर चींटियों को अमेरिकनों तथा पाक के पास यह बल नहीं था। बचाते रहें परन्तु महावीर अहिंसा केवल इतनी मैं बड़ी नम्रता के साथ परन्तु दृढ़ भर नहीं है और न केवल इतने पर से स्थायी कि. नहीं । उनके पास तो असत्य ओर अन्याय पर शान्तिको दोगी क्यों कि हिंसा को उभारने वाले आधारित दुरात्म (राक्षसी) बल था। अरब जो कुत्सित भाव हमारे अन्तरंग में आते हैं यहूदियों को एक जगह बसकर रहने नहीं देना जब तक उनसे छुटकारा नहीं पा लिया जायगा चाहते थे, वे अमेरिकन वियतनामियों को अपने तब तक कोई अन्तर पड़ने वाला नहीं। जब तक अंगूठे के नीचे कराहते रखना चाहता था और . घणा, ईर्ष्या, द्वेष, प्रहंकार और तृष्णा का तांडव पाकिस्तान का पश्चिमी अंचल अपने पूर्वी अंचल । न बना रहेगा हिसा पैरालाइज्ड (निर्गीव सी मौन) (सोनार बांगला) को अपने रोमांस के लिए शोषण रहेगी। जब तक स्वार्थ और परिग्रह-लिप्सा का करते रहना चाहता था और अल्प संख्यकों को बेघर दानव रक्षा प्रायगा. हिंसा मह बाये रहेगी। बार कर देना चाहता था । जब तक हिंसा का यह रिवाज चलता रहेगा ___ ये संघर्ष थे सत्य और असत्य के बीच, हिंसा : अहिंसा की तथाकथित साधना बेकार जायगी । और अहिंसा के बीच । इन सबों में जीत सत्य जितना हमने देखा और समझा है उतने ही को अहिंसा और मनोबल की हो हुई । हथियार हम सत्य ससझते रहे और भाग्रह पर जमे रहे, उठाते हुए भी वीर वियतनामियों के पास सत्य बात बात में भौहें तानते रहे, अांखें लाल करते एवं मनोबल की आत्मिक शक्ति थी क्योंकि उनकी रहे तथा स्वार्थ की बैसाखियों के सहारे ही चलते भावना अपनी मातृभूमि और अपनी प्राजादी की रहे तो हिंसा का ब्रीडिंग-ग्राउंड यथावत बनी रक्षा करने की थी । अमेरिका जनता से उन्हें कोई रहेगी।। यही दिव्य उपदेश संसार के प्राणियों द्वेष नहीं था । इस सत्य का चमत्कार था कि स्वयं को आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भ. महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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