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________________ झूठा और झूठे को सच्चा बना देते हैं। रिश्वत का दौर आजकल इतनी जोरों पर कि समाज का कोई भी वर्ग उससे अछूता नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि इस युग में गरीबों का कोई सहायक नहीं है । समाज के द्वारा बनाया गया यह वर्ग अपनी उलझनों में दिन पर दिन मछली के जाल की तरह लिपटता जाता है । उससे निकलने का उसके पास कोई उपाय नहीं है । यह सब श्रमर्यादित संचय वृत्ति का ही परिगाम है । मर्यादाहीन संचय वृत्ति से प्रत्येक राष्ट्र में साम्राज्यवाद की तीव्र लिप्सा जागृत हो गई है । विज्ञान के नित नए आविष्कार भी उनकी इस वृत्ति में सहायक हो रहे हैं। वियतनाम, कम्बोडिश अदि में हो रहे युद्ध इसी वृत्ति का दुष्परिणाम हैं। युद्धों को भीषण ज्वाला ने विश्व को सामाजिक स्थिति को छिन्न-भिन्न कर डाला है। लोगों को शान्ति की सांस लेना भी दूभर हो गया है। इस भयावह स्थिति ने लोगों के मन श्रीर मस्तिष्क को निर्बल बना दिया है । सभी लोग शांति की कामना कर रहे हैं। शांति की कामना करने वाले व्यक्ति भी परिग्रह की ही पूजा में लगे हुए हैं। उनका यह कार्य तो अग्नि में घी डालकर उसे शान्त करना ही प्रतीत होता है । 1-85 हुआ था कृषि पूर्ण रूप से वर्षा पर ही निर्भर थी । वस्त्रों के उत्पादन में भी केवल हाथ करघा का प्रयोग होता था, किन्तु प्राज तो कृषि के लिए तकनीकी यन्त्रों की सहायता ली जाती है, खाद्यान्न की उपज भी अच्छी है । वस्त्रों के लिए बड़ी-बड़ी मशीनें उपयोग में लाई जा रही हैं, तब भी दिन-प्रतिदिन वस्तुओं के प्रभाव का एकमात्र कारण संचयवृत्ति ही है । Jain Education International मनुष्य समाज के लिए घन एक आवश्यक वस्तु है । उदरपूर्ति का मुख्य साधन है । किन्तु तृष्णा के वशीभूत होकर यह साधन साध्य का रूप धारण कर लेता है, तब इसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य नीति-नीति को भूल जाता है मोर अनेक अनर्थ कर डालता है । जो धन, जीवन की प्रावश्यक वस्तु है वही पतन का कारण हो जता है । क्योंकि प्रकृति प्रदत्त वस्तुए जब तक सीमित रहती हैं तमी तक लाभदायक सिद्ध होती हैं किन्तु जहाँ वे अपनी मर्यादा को लांघती हैं तभी उनका परिणाम भयंकर हो उठता है । उसी प्रकार धन सीमित मात्रा में ही सुख-शान्ति प्रदान करता है । सामाजिक-आर्थिक जीवन में समानता स्थापित करने के लिए विचारकों ने कुछ उपाय निकाले हैं । जिनमें साम्यवाद और समाजवाद प्रमुख हैं । साम्यवाद तो रूस की देन है। दोनों का लक्ष्य समाज एवं राष्ट्र में समानता स्थापित करना है । किन्तु उनमें भी स्वार्थान्धता के कारण हिंसा और बल प्रयोग की प्रवृत्ति अधिक दिखलाई पड़ती है । साम्यवाद अपनी हिंसक कार्यवाहियों द्वारा धरिक वर्ग को समाप्त करने के लिए प्रयत्न करता है । उसकी ये हिंसाप्रद कार्यवाहियां चाहे एक बार सफल हो जायें, किन्तु उनमें स्थिरता नहीं भा सकती। इसमें निर्बल पक्ष, शक्तिशाली, निर्बल हो सकते हैं। जिससे पारस्परिक विद्वेष प्रौर संघर्ष बढ़ने की आशंका अधिक है। हिंसापूर्वक किया गया कार्य हिंसा, भय और प्रतिद्वन्द्वता को ही वत्तमान युग मंहगाई और वस्तुओं के प्रभाव का युग है। जहां तक दृष्टि जाती है, सभी मंहगाई का रोना रोते नजर आते हैं यद्यपि ईमर्जेंसी लागू होने के पश्चात् स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ है) । इस पर भी दैनिक उपयोग में भानेवाली वस्तुनों का किसी भी कीमत पर न मिलना, सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न कर देता है । वस्तुत्रों का प्रभाव गाहस्थिक जीवन को प्रशान्त बना देता है । कहा जाता है कि कुछ वर्षों पूर्व भारत में घी, दूध की नदियां बहा करती थीं। यह देश सोने को चिड़िया के नाम से प्रसिद्ध था । उस समय जब साधन सीमित थे, वैज्ञानिक यन्त्रों का याविष्कार नहीं बढ़ाता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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