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________________ 1-68 मद्दीया नगर वर्तमान भागमपुर से पूर्व की ओर समरथ होय सहें वर-वन्धन ते 24 मील की दूरी पर पथर घाटा के मासपास गुरू सदा सहाय हमारे। होने का अनुमान किया गया है वर्तमान उत्तरप्रदेश महावीर की क्षमता-शक्ति से वे उपसर्गकारी के इटावा जिले से उत्तर-पूर्व में सत्ताईस मील दूर अनार्य बाद में स्वयं ही इतने लज्जित हए कि स्थित ऐरवाग्राम ही महावीर कालीन मालमिका उन्होंने उनसे क्षमा याचना की। योगिराज महानगर था। वर्तमान गोरखपुर जिले का प्राधुनिक वीर के सम्मुख हिंसक उपायों को निरर्थक हमा सहैठ-महेठ ही महावीरकालीन श्रावस्ती नगर देखकर वे अहिंसा का महत्व समझ गए और उसके था । परम भक्त बन गए। इसी प्रकार गोपालक, शूलिमहावीर का 9 वां चतुर्मास सबसे कठिन पारिणयक्ष, रुद्रदेव, चण्डकोशिक सर्प, तथा मक्खलि बीता। जब वे लाढ़ देश (बंगाल) पहुँचे तो वहां पुत्र गोशालक आदि के द्वारा की गई मारपीट एवं के अनार्यों ने महावीर के प्रति प्रत्यन्त कठोर वर्ताव उनके द्वारा किए गए अनेक उपसर्गों को भी महाकिया। उन्होंने उनपर जलते अंगारे फेंके, पत्थर वीर ने समवृत्ति पूर्वक सहा । इन रोमांचकारी बरसाए एवं शिकारी कुत्ते छोड़े। किन्तु महावीर उत्पीड़ानों के समय भी वे हिमालय की भांति अडिग, अडोल एवं प्रकम्प बने रहे। ने उन सभी कष्टों को कर्मबन्ध के जीर्ण-शीर्ण महावीर ने बारह वर्ष की कठोर साधना के एवं विनष्ट होने का सुअवसर जानकर उन्हें सम बाद 42 वर्ष की आयु में उत्कृष्ट आध्यात्मिक वृत्ति से सहन किया। सम्पत्ति प्राप्त की और वे केवलज्ञानी बनकर हिन्दी के महाकवि भूधरदास ने उसकी चर्चा सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी कहलाए। इन्द्र ने राजगृह के करते हुए कहा है : विपुलाचल पर एक विशाल कलापूर्ण समवशरण निरपराध निवर महामुनि तिनको की रचना की, जिसमें महावीर ने सर्वधर्म समन्वय दुष्ट लोग मिल मारै के प्रतीक स्याद्वाद और अनेकान्त, कर्म सिद्धान्त, कोई बैंच खम्म से बाधैं सृष्टि विद्या, मानव समाज-व्यवस्था प्रभृति विषयों कोई पावक में परजारे पर तत्कालीन जनभाषा में अपने अमृतमय उपदेशों तह विकोप नहीं करें कदाचित् पूर्वकर्म विचारे का प्रसार किया ।। 1. दिनांक 8-12-24 को भगवान् महावीर के दीक्षा-दिवस पर सार्वजनिक सभा में प्रदत्त तथा प्रांशिक रूप से पाल इण्डिया रेडियो पटना द्वारा प्रसारित भाषण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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