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________________ 1-50 म्बर परम्परा के अनुसार पंचमुष्ठि लुचन करने के अत्यधिक सुगन्धित था, फलस्वरूप चार माह से बाद जब उन्हें मनःपर्यय ज्ञान उत्पन्न हो गया तब अधिक समय तक अनेक जाति के प्राणी पाकर इन्द्र ने उन्हें एक देवदूष्य वस्त्र प्रदान किया, जिसे उनके शरीर पर रहने लगे, शरीर पर चढ़कर उनकी महावीर ने स्वीकार किया । भगवान 13 माह हिंसा करने लगे-मांस खून वगैरह चखने लगे ।। तक उस वस्त्र को धारण किए रहे, अनन्तर वे भगवान महावीर दंशमशक के इस परिषह को वस्त्र छोड़कर अचेलक हो गए। प्राचाराङ्ग सूत्र समभावपूर्वक सहन करते रहे। के प्रथम श्रु तस्कन्ध के छठे अध्ययन उद्देश्क 3 में उपवास-दिगम्बर ग्रन्थों में भगवान महावीर भगवान ने अचेलकत्व की प्रशंसा की है। द्वारा किए गए विविध उपवासों का विगतवार दंशमशकपरिषहजय-दीक्षा के समय भगवान वर्णन नहीं मिलता है, जबकि श्वेताम्बर ग्रन्थों में के शरीर में सुगन्धित प्रङ्गराग था ।10 इसके उनकी तपस्याओं का उल्लेख इस प्रकार पाया अतिरिक्त भगवान का शरीर स्वाभाविक रूप से जाता है12 तपनाम संख्या उसके दिन वर्ष मास दिन 1. छह मास 2. पांच दिन कम छ:मास 1 4. चौमासी 9 4. तीन मासी 2 b. अढाई मासी 2 6. दो मासी 7. डेढ़ मासी 8. मास क्षमण 12 9 पक्ष क्षमण 72 10. सर्वतोभद्र प्रतिमा 1 11. महाभद्र प्रतिमा । 12. अष्टम् 12 13. षष्ठ 229 14. भद्र प्रतिमा 15. दीक्षा दिवस 16. पारणा. 349 * कुल दिवस 4515 6x30x1= 180 060 6x30-5 =175 4x30x9 - 1080 3x30x2 -180 20x30x2 -150 2x30x6 -360 ॥x 30x2 - 90 1x30x12 - 360 011x30x72 - 1080 10 दिवस की -10 4 दिवस की - 4 3x12 = 360 18 2x229 = 458 1 ) दो दिन की - 2 0 0 1 एक दिन की 1 349 दिन की' -349 वर्ष 12 मास 6 दिन 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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