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________________ ६६ श्रमणविद्या-३ इस तरह इस मत में काल की पारमार्थिक सत्ता मान्य नहीं है। उसकी केवल प्रज्ञप्तिसत्ता ही मान्य है। वैभाषिक मत बाह्य, आध्यात्मिक, अतीत, अनागत, प्रत्युत्पन्न आदि सभी संस्कृत धर्मों की द्रव्यसत्ता मानने के कारण कुछ बौद्ध सर्वास्तिवादी या वैभाषिक कहलाते हैं। 'सर्व' का तात्पर्य बारह आयतन और तीनों कालों से हैं । 'अध्व' शब्द काल का पर्यायवाची है। यद्यपि अतीत, अनागत, प्रत्युत्पन्न तीनों अध्वों में वे धर्मों का अस्तित्व स्वीकार करते हैं, फिर भी संस्कृत धर्मों से भिन्न किसी 'काल' नामक पदार्थ का अस्तित्व वे भी स्वीकार नहीं करते। इसीलिए इनके मत में 'अध्व' शब्द संस्कृत का पर्यायवाची माना गया है। धर्म ही अतीत अनागत आदि होते हैं, उनसे अतिरिक्त अतीत, अनागत आदि काल की सत्ता नहीं है। संस्कृत धर्मों से अभिन्न होने के कारण संस्कृत धर्मों की भाँति काल को भी इन्हें द्रव्यसत् धर्म मानना चाहिए। रूप, चित्त, चित्तसम्प्रयुक्त (चैतसिक), चित्तविप्रयुक्त एवं निर्वाण नामक पाँच धर्मों की वस्तुसत्ता वैभाषिक मत में मान्य है। १४ चित्तविप्रयुक्त धर्मों में काल की गणना की जाती है। इसीलिए ये लोग काल को संस्कार स्कन्ध, धर्मायतन और धर्मधातु में परिणगना करते हैं। १४ चित्तविप्रयुक्त धर्मों में एक जीवितेन्द्रिय है। यह त्रैधातुक धर्मों की आयु है। आयु, ऊष्मा और विज्ञान जब शरीर को छोड़ देते हैं तो यह शरीर काष्ठ के समान अचेतन हो जाता है। इन तीनों धर्मों में आयु ही शेष दोनों धर्मों (ऊष्मा और विज्ञान) का आधार होती है। इसीलिए आयु ‘स्थिति-हेतु' भी कहलाती है। सौत्रान्तिक दार्शनिक 'कर्म' को आयु, ऊष्मा और विज्ञान तीनों का आधार मानते हैं। उनका कहना है कि कर्म के आधार पर जब सारी व्यवस्था ठीकठीक बैठ जाती है तो एक 'आयु' नामक द्रव्यान्तर की कल्पना निरर्थक है। किन्तु वैभाषिकों का कहना है कि ऊष्मा और विज्ञान का आधार 'आयु' नामक एक पृथक् द्रव्य अवश्य होता है। इस प्रकार चित्तविप्रयुक्तों में परिगणित होने १. सर्वमस्तीति ब्राह्मण, यावदेव द्वादशायतनानीति। द्र.-द्वादशायतनसूत्र। २. ते पुन: संस्कृता धर्मा रूपादिस्कन्धपञ्चकम्। त एवाध्वा कथावस्तु..........।। द्र.-अभि.कोश, १:७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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