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________________ वर्तमान समय में बुद्ध-वचन की प्रासंगिकता महान् अष्टांगिक मार्ग की प्रक्रिया की उपस्थापना करते हुए बुद्ध ने सुखद व्यक्तित्वशाली, दृढ़ और महान् चरित्र गठन पर बल दिया है जो समाज की मूल्यवान सेवा कर सके। नैतिकता और मननशील एकाग्रता को साथ जोड़ते हुए बुद्ध ने नैतिक भावना को गहन बनाने का मार्ग दर्शाया है। बौद्धधर्म में अन्तर्मन का महत्त्व अधिक समझा जाता है और मार्ग द्वारा निर्देशित सम्पूर्ण व्यक्तित्व का भी समाज की भलाई के लिए काफी महत्व है। यह सही है कि निर्देशित पथ का सम्बन्ध प्रधानत: बौद्ध सन्यासियों के संघ से है किन्तु विश्लेषण करने पर आठ तत्त्वों में निहित सामाजिक मूल्यों की अवहेलना नहीं की जा सकती है। पथ निर्देशित नैतिकता या नीति ज्ञान कार्य केन्द्रित है और स्वभाव से परिवर्तनात्मक भी। बुद्ध ने पथ का निर्देश शास्त्रीय विवेचन के लिए नहीं, बल्कि परोपकार की भावना नैतिकता के लिए प्रयास शरीर और मन की स्फूर्ति वासनाओं और किसी भी प्रकार की बुरी भावनाओं से पूर्ण रूप से मुक्त उत्साही मन के प्रबर्धन की सहायता के लिए किया गया था। बौद्ध धर्म की अन्य नीतिशास्त्रीय प्रक्रियाओं को अगर ठीक से पालन हो और ग्रहण हो तो वह जागतिक समस्या और तनावों को अनेकांश तक आसान और दूर कर सकती हैं। ब्रह्मविहार के नाम से अभिहित प्रक्रिया चार उदात्त वर्गों को समेटे है जो कि अष्टांगिक मार्ग से सम्बद्ध हैं। चार वर्गों द्वारा प्रस्तुत आदर्श नैतिक गुणों और परार्थवादी मूल्यों के लिए विशिष्ट है। वे चार परिचित हैं-मत्ता (मैत्री) करुणा, मदिता और उपेक्खा (उपेक्षा) के नाम से बौद्ध धर्म में ये विचार नहीं, बल्कि केवल भावनाएँ या ध्यान के प्रकार मात्र हैं जिनकी प्राप्ति व्यवहार के माध्यम से होती है। सर्वोच्च प्रकार के परार्थवाद की अभिव्यत्ति इन चारों प्रकार के विचार के द्वारा हुई है जो पूर्ण रूप से व्यवहत होने पर समाज को जीने के योग्य बनाते है। ये चार विभाजन, सांख्य प्रणाली द्वारा भी समझाये गये है, पर इस सम्बन्ध में अन्तर निहित है-बौद्ध धर्म द्वारा प्रचारित उदार रवैया, सार्वभौमिकता और परिवर्तनशील परार्थवाद में। - ब्रह्मविहार का पहला वर्ग मेत्ता या मेत्ता भावना एक गहरा सामाजिक तात्पर्ययुक्त महत्त्वपूर्ण नैतिक विचार है। यह बुद्ध के अनुगामी को सर्वदा ब्रह्माण्ड के हर प्राणी के चाहे वह परिचित हो या अपरिचित जन्मा हो या अभी तक अजन्मा, भलाई और सुख के लिए उत्कण्ठित रहने की शिक्षा देता है। 'सब्बे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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