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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा ५. कथेतु कम्यता-साकच्छा-धर्म के विषय में प्रश्न और उन के लिए विचार विनिमय। इस प्रकार धम्मसाकच्छा अर्थात् समय-समय पर धर्म के विषय में विचारविनिमय करना उत्तम मंगल है, क्योंकि यह विशिष्ट गुणों के अधिगम का कारण है। ६. तपो (आत्म-संयमन या नियन्त्रण) को भगवान् बुद्ध ने उत्तम मंगल कहा है। तप अभिध्या तथा दौर्मनस्य को जला देता है। भस्मीभूत कर देता है। अत: यह इन्द्रिय संवर है। यह आलस्य को जला देता है। अत: यह वीर्य है। जो व्यक्ति इस तपन को धारण करता है, वह आतापी कहलाता है—'आसमन्ततो तपतीति आतापी'। तेरह धुतंगों को तप की संज्ञा दी गयी है। तप (तपश्चरण) से ध्यानादि का प्रतिलाभ होता है। तथा अभिध्या का विनाश होता है। अत: तप उत्तम मंगल है। ७. ब्रह्मचरियं-अर्थात् ब्रह्मचर्य को भगवान् बुद्ध ने उत्तम मङ्गल कहा है। ब्रह्मचरिय शब्द दो संघटक पदों अर्थात् ब्रह्म-चरियं इन दो पदों के योग से बना है-इस प्रकार ब्रह्म का अर्थ श्रेष्ठ तथा चरियं का अर्थ है आचरण। इस प्रकार श्रेष्ठ आचरण को ब्रह्मचर्य कहते हैं। अ-ब्रह्मचर्य को छोड़कर ब्रह्मचारी होता है, अर्थात् मैथुन धर्म को छोड़कर ब्रह्मचारी होता है। 'ब्री सेट्ठ आचारं चरतीति ब्रह्मचारी' अर्थात् जो श्रेष्ठ आचरण करता है, उसे ब्रह्मचारी कहते हैं। ब्रह्मचर्य शब्द दान, वेय्यावच्च (सेवा), पञ्चशिक्षापदशील, अप्रमाण्या, मैथुनविरति, स्वदारसन्तोष, वीर्य, उपोसथ, आर्यमार्गशासन आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है। ब्रह्मचरियं पकासेतीति एत्थ पनायं ब्रह्मचरिय सद्दो दाने वेय्यावच्चे पञ्चसिक्खापदसीले अप्पमञासु मेथुनविरतियं सदार-सन्तोसे वीरिये उपोसथङ्गेसु अरियमग्गे सासनेति इमेस्वत्थेसु दिस्सति (१. म.नि. १।२३०)। . तीनों शिक्षाओं अर्थात् शील-समाधि तथा प्रज्ञा से युक्त सम्पूर्ण बुद्धशासन को ब्रह्मचर्य कहते हैं—सिक्खत्तयसङ्गहितं सकलसासनम्पि ब्रह्मचरियं'। इस प्रकार ब्रह्मचर्य उत्तम मंगल है, क्योंकि यह निर्वाण के अधिगम का कारण है। ब्रह्मचर्य पवित्र जीवन-यापन का अनन्य प्रतिमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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