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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा ३. समणानंदस्सनं अर्थात् भगवान् बुद्ध के अनुसार श्रमणों का दर्शन उत्तम मंगल है। श्रमण उन्हें कहा जाता है जिसके क्लेश शमित हो जाते हैं 'किलेसानं समितत्ता समणा'। जो समता का आचरण करता है, उसे श्रमण कहते हैं-'समचरिया समणो ति वुच्चति' (धम्मपद ३८८) जिनके क्लेश उपशमित हैं, जिन्होंने काय, वचन, चित्त एवं प्रज्ञा की भावना कर ली है, उत्तम दमथ, शमथ से जो समन्वागत हैं, प्रब्रजित हैं, उनके पास जाकर, उपस्थाप, अनुस्मरण एवं श्रवण को श्रमणदर्शन कहते हैं ऐसे गुणसम्पन्न श्रमण के दर्शन से आश्रव (दोष) शान्त हो जाते हैं, गुण, ज्ञान तथा प्रज्ञा आदि विद्यमान रहते हैं और परमोत्तम संयम और शान्ति की उपलब्धि होती है। भगवान् बुद्ध ने कहा है श्रमणदर्शन को भी में बहु-उपकारी कहता हूँ (सु.नि. १।२५४)। भिक्षु को अपने गृहद्वार पर सम्प्राप्त (आया) देखकर अपने साधन के अनुरूप यथाशक्ति देयधर्म के द्वारा हित चाहने वाले गृहस्थ को सम्मानित करना चाहिए यदि उसके पास देयधर्म नहीं है तो पञ्चप्रतिष्ठित आकृति से वन्दना करनी चाहिए, यदि वह भी संभव न हो तो हाथ जोड़कर नमस्कार करना चाहिए, यदि वह भी संभव न हो तो प्रसन्नचित्त से प्रियचक्षुओं से देखना चाहिए। इस प्रकार दर्शनमूलक पुण्य से अनेक सहस्र जन्मों में उसकी आँखों में रोग, दाह (जलन) सूजन, व्रण आदि नहीं होते हैं, उसकी आँखे विप्रसन्न पाँच वर्ण के रत्नों की चमक से चमकने लगेंगी, रत्नविनिर्मित विमान मणिकपार के समान दृश्यमान होंगी और वह देवों और मनुष्यों में शतसहस्त्र कल्प तक सम्पत्ति का लाभी होगा। यह सर्वथा आश्चर्य नहीं. है कि प्रज्ञान के साथ जन्म लेने वाला मनुष्य सम्यक् प्रवृत्ति श्रमण दर्शनमय पुण्य से इस प्रकार की विपाक सम्पत्ति का अनुभव करे। पशुपक्षी योनि में जन्म लेने वाला भी केवल श्रद्धा के द्वारा किए गए श्रमण दर्शन की विपाकसम्पत्ति की प्रशंसा करते हैं। उलूको मण्डलक्खिको, वेदयिके चिरदीघवासिको । सुखितो वत कोसिको अयं, कालुट्टितं पस्सति बुद्धवरं ।। १. यो समेति पापनि अणु थुलं च सब्बसो। समितत्ताहि पापानं समणो ति पवुच्चति।। (धम्मपद २६५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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