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________________ श्रमणविद्या-३ बिना दिए ग्रहण करता है, सुरमेरय का पान करता है वह इन पाँच वैरों को अर्थात् पाँच घृणात्मक वस्तुओं को नहीं छोड़ने से दुश्शील कहलाता है। मरने के बाद वह निरयलोक में उत्पन्न होता है। किन्तु इसके विपरीत जो प्राणियों की हिंसा नहीं करता है, झूठ नहीं बोलता है, चोरी नहीं करता है, सुरमेश्य का पान नही करता है परदाराभिगमन नहीं करता है, वह पाँच वैरों को छोडकर शीलवान् कहलाता है और मरने के बाद सुगति को प्राप्त करता है।' इस प्रकार पाप स विरति मङ्गल है क्योंकि यह सुगतिप्रापक है। (२) मज्जपानासंयमो अर्थात् मद्यपान का संयम उत्तम मङ्गल है। वस्तुत: यह सुरा मेरय, मद्य आदि के पान से संयम है। जो मद्यपान करता है वह अर्थ को नही जानता है,धर्म को नहीं जानता है माता का पिता का बुद्ध तथा प्रत्येकबुद्ध का एवं तथागत श्रावकों का अन्तराय करता है, दृष्टधर्म में गर्हा उत्पन्न करता है, भविष्य में दुर्गति को प्राप्त करता है, उन्माद को प्राप्त करता है। मद्यपान से संयम करने पर उपर्युक्त दोषों का उपशमन होता है, और उसके विपरीत गुणसम्पदा को प्राप्त करता है इसलिय मद्यपान से संयम को उत्तम मङ्गल कहा गया है। सिगालोवाद सुत्त में मद्यपान के छह दुष्परिणाम बताए गए हैं (१) तत्काल धन की हानि (२) कलहविवाद का बढना (३) यह रोगो का घर है (४) यह अपयश उत्पन्न करने वाला है (५) लज्जा का नाश करने वाला है तथा (६) प्रज्ञा को क्षीण करता है। (३) अप्पमाद अर्थात् अप्रमाद उत्तम मङ्गल है। कुशल धर्मों में अप्रमाद उत्तम मङ्गल है क्योंकि अप्रमाद प्रमाद का प्रतिपक्ष है। अप्रमाद से स्मृति बनी रहती है। यह नाना प्रकार के कुशल धर्मों के अधिगम का मूल कारण है तथा अमृताधिगम का हेतु है। प्रमाद में असावधानता, अन्यमनस्कता, अनवधानता, अवलीनवृत्तिता, अनभिरुचिता, निक्षिप्रछन्दता, निक्षिप्तधुरता, अनासेवना, अभावना, अबहुलीकर्म, अनधिष्ठान तथा अननुयोग वर्तमान रहता है। २. वही। १. सं. नि. कोसलसंयुक्त, अप्पमादसुत्त; ३. दी. नि. दसुत्तरसुत्त, ३४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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