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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा मालं न धारे नच गन्धमाचरे, मञ्चे छमायं च सयेथ सन्थते । एतं हि अट्ठङ्गिकमाहुपोसथं, बुद्धेन दुक्खन्तगुना पकासितं ।। मुत्तामणि वेलुरियं च भद्दकं सिंगीसुवण्ण अथवा पि कञ्चनं । यं जातरूपं हरकं च वुच्चति अट्ठङ्गुपेतस्स उपोसथस्स ।। कल्लम्पि ते नानुभवन्ति सोलसिं चन्दप्पभा तारगणापि सब्बे । तस्माहि नारी च नरो च सीलवा अट्ठङ्गुपेतं उपवस्सुपोसथं । पुञानि कत्वान सुखुन्द्रियानि अनिन्दिता सग्गमुपेति ठानं ति ।। अन्य उपोसथों में 'पकति उपोसथ' पटिजागर उपोसथ तथा पाटिहारिक उपोसथ के नाम उल्लेख्य हैं। पकतिउपोसथ का अर्थ है उपोसथ का समान्य अनुपालन जिसे महीने के आठ दिनों तक रखा जा सकता है। शुक्ल-पक्ष में चार दिन तथा कृष्ण पक्ष कालपक्ख में पाँचवी, आठवीं, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा की तिथियाँ इसके लिए निर्धारित हैं। ये पकति-उपोसथ के समय हैं। 'पटिजागर-उपोसथ' यह उद्बोधित व्यक्तियों के द्वारा अनुपालनीय उपोसथ है। महीने के ग्यारह दिनों तक इसका अनुष्ठान किया जा सकता है। यह शुक्लपक्ष के पाँच दिन अर्थात् चतुर्थी, पञ्चमी, सप्तमी, नवमी तथा त्रयोदशी को तथा कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, द्वादशी तथा त्रयोदशी को उपोसथ किया जा सकता है। पाटिहारिक-पक्ख उपोसथ-यह एक विशिष्ट प्रकार के उपोसथ का अनुपालन है। इसका अनुपालन वर्षा ऋतु के प्रारम्भ होने पूर्व आषाढ़ में तथा मध्य जुलाई से मध्य अक्तूबर तक वर्षा ऋतु के तीन महीनों में तथा कार्तिक माह में किए गए उपोसथों को पाटिहारिक उपोसथ कहते हैं। इस सन्दर्भ में भगवान् बुद्ध ने कहा है ततो च पक्खस्सुपवस्सुपोसथं चातुद्दसि पञ्चदसिं च अट्ठमिं । पाटिहारिकपक्खञ्च पसन्नमानसो अट्ठङ्गुपेतं सुसमत्तरूपं ।। (सुत्तनिपात, धम्मिकसुत्त, १८२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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