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________________ बुद्धघोसुप्पत्ति संवर्द्धन जिसमे बुद्धघोष की जीवनी है, तेरहवीं शताब्दी के मध्य भाग में लिखा गया, अत: 'बुद्धघोसुप्पत्ति' को उसके कुछ बाद अर्थात् चौदहवी शताब्दी की रचना मान सकते हैं। इसी शताब्दी में पगान में मंगल नामक भिक्षु हुए, जिन्होंने 'गन्धट्ठि' नामक व्याकरण ग्रन्थ (उपसर्गों पर) लिखा। गायगर ने इस मंगल नामक बर्मी भिक्षु के साथ बुद्धघोसुप्पत्ति के लेखक महामंगल को मिलाने का सन्देहपूर्ण सुझाव दिया है। परन्तु यह विल्कुल भी संभव नहीं है। जैसा रोमन लिपि में बुद्धघोस्प्पत्ति के सम्पादक जेम्स ग्रे ने स्वीकार किया है, महामंगल एक सिंहली भिक्षु थे। अत: उन्हें बर्मी मंगल से नही मिलाया जा सकता। तेरहवीं-चौदहवी शताब्दी में सिंहल में मंगल नामक एक अन्य महास्थविर भी हो गये है, जो विदेह स्थविर के गुरु थे। इनसे इस महामंगल को मिलाया जाय या नहीं, यह भी एक समस्या ही है। अस्तु 'बुद्धघोसुप्पत्ति' में अलौकिक विधान इतना अधिक है कि उसका वास्तविक ऐतिहासिक महत्त्वांकन नहीं किया जा सकता। बुद्धघोष की बाल्यावस्था और प्रारंम्भिक शिक्षा तथा धर्म-परिवर्तन का वर्णन करते समय ऐसा मालुम होता है मानो 'मिलिन्दपव्ह' के नागसेन और रोहण तथा 'महावंस' (परि.५) के सिग्गव तथा मोग्गलिपुत्ततिस्स सम्बन्धी प्रकरणों के नामूनों का ही रूपान्तर कर के रख दिया गया है। यद्यपि लेखक ने बुद्धघोष के जन्म, बाल्यावस्था, प्रारम्भिक शिक्षा, धर्मपरिवर्तन ग्रन्थ-रचना आदि सभी का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है। बुद्धदत्त कृत विनय विनिच्छय के अनुसार बुद्धदत्त ने बुद्धघोष-कृत विनय और अभिधम्मपिटक सम्बन्धी अट्ठकथाओं को ही क्रमश: अपने ‘विनय-विनिच्छय' और अभिधम्मावतार' के रूप में संक्षिप्त रूप दिया था। किन्तु 'बुद्धघोसप्पति' में बुद्धदत्त का प्रथम लंकागमन दिखा कर बुद्धघोष को अपना अपूर्ण काम पूरा करने का उन्हें आदेश देते दिखाया गया है। निश्चय ही 'विनयविनिच्छय' का ही प्रमाण यहाँ दृढ़तर माना जा सकता है। 'विद्वानों ने महास्थविर मंगल की इस रचना को चौदहवीं शताब्दी का माना है। वीरेन्द्र पाण्डेय २८।४।२००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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