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________________ बुद्धघोसुप्पत्ति रहते हुए अपने अनुरूप वासस्थान के लिए निवेदन किया, जहाँ पर बैठकर बुद्धवचनों को मागधी में परिवर्तन कर लिखा जा सके। महास्थविर ने बुद्धघोष को रहने के लिए लौहप्रासाद में स्थान नियत किया। वह लौहप्रासाद सात तलों से युक्त था। क्रमश: सभी तलों में क्षीणास्रव, धुतङ्गधर, सुत्तन्तधर, विनयधर, अभिधम्मधर, मग्गफल के लिए प्रयत्नशील तथा त्रिलक्षण की भावना करने वाले भिक्षु रहते थे तथा नीचे के तल में जहाँ कोई भिक्षु नहीं रहते थे, वहाँ स्थविर बुद्धघोष निवास करने लगे तथा सम्पूर्ण बुद्धवचनों को सिंहलीभाषा से मागधी भाषा में परिवर्तन का कार्य करने लगे। बुद्धघोष धुताङ्गधर थे और त्रिपिटकधर थे। उन्होंने प्रतिदिन बुद्धवचनों को मागधीभाषा में लिखते थे इस प्रकार के कार्यों से वहाँ रहने वालें भिक्षु अत्यन्त प्रसन्न हुए। आचार्य बुद्धघोष ने तीन महीने में सम्पूर्ण बुद्धवचन को मागधी में परिवर्तित कर दिया। बुद्धवचन को मागधी में परिवर्तित कर महास्थविर को निवेदित किया। महास्थविर अत्यन्त प्रसन्न भाव से साधुकार प्रदान करते हुए कहा 'सासनं नाम दुल्लभं बुद्धसेट्ठस्स भासितं । परिवत्तानुभावेन तं पस्साम यथा सुखं ।। यथा पि पुरिसो अन्धो समासमं न पस्सति । तथा महं न पस्साम सासनं बुद्धभासितं ति ।। इसके उपरान्त आचार्य बुद्धघोष ने महास्थविर से प्रार्थना की भन्ते मैं जम्बुद्वीप जाना चाहता हूँ। ऐसा निवेदन कर जम्बुद्वीप के लिए नाव से व्यापारी के साथ प्रस्थान कर गये। आने से पूर्व लंकावासियों को अपने संस्कृत प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया। सिहलवासियों ने आदर सहित बुद्धघोष को विदा किया। अष्टम परिच्छेद इस परिच्छेद में आचार्य बुद्धघोष का भारत प्रत्यागमन का वर्णन किया गया है। अपने उद्देश्य को पूर्ण कर स्थविर बुद्धघोष वणिक मित्र के साथ भारत आने के लिए नावारूढ़ हुए। और कुछ ही दिनों में भारतीय बन्दरगाह पर पंहुचे। अपने वणिक्-मित्र से पूछकर अपना पात्रचीवर लेकर उपाध्याय के निकट गये। त्रिपिटक एवं अट्ठकथा सहित सम्पूर्ण बुद्धवचनों का मागधी में लिखित पुस्तकों को दिखाया। दिखाने के अनन्तर उपाध्याय के दण्ड से मुक्त हो अपने दोष के लिए क्षमा माँगकर उपाध्याय की वन्दना कर माता-पिता के निकट गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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