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________________ परिचिति षष्ठ परिच्छेद इस परिच्छेद में आचार्य बुद्धघोष द्वारा सिंहली से मागघी में अट्ठकथाओं के परिवर्तन की कथा वर्णित है। स्थविर बुद्धघोष लंका द्वीप में संघराज महास्थविर को प्रणाम करने को गये। वहाँ महास्थविर भिक्षुओं को अभिधर्म एवं विनय का अध्यापन कर रहे थे। वहाँ जाकर बुद्धघोष उन स्थविरों के पीछे बैठ गये। महास्थविर अध्यापन करते हए अभिधर्म के गण्ठिस्थल को स्पष्ट करने में असफल हो कर महास्थविरों को अध्यापन में लगाकर स्वयं अन्तर्गर्भ में ग्रन्थिस्थल पर विचार करते हुए प्रवेश कर गये। बुद्धघोष ने ऐसा देखकर उस ग्रन्थि स्थल का अर्थ लिखकर वहाँ रख दिया। जब महास्थविर ने उसको देखा तो उन स्थविरों से पूछा ‘इसे किसने लिखा है उन पाठक स्थविरों ने कहा कि आगन्तुक भिक्षु ने इसे लिखा होगा। महास्थविर ने बुद्धघोष को बुलाया। पूछने पर बुद्धघोष ने कहा 'इसे मैंने लिखा हैं।' महास्थविर ने तिपिटक पढ़ने को कहा तो आचार्य बुद्धघोष ने कहा है कि इसे पढ़ने यहाँ नही आया हूँ वरन् बुद्धवचनों को सिंहली से मागधी में परिर्तन करने के लिए आया हूँ। आचार्य बुद्धघोष की बात सुनकर महास्थविर अत्यन्त प्रसन्न हुए और निम्नलिखित गाथा को तीनों पिटकों के अनुसार व्याकरण करने को कहा सीले पतिट्ठाय नरो सपञो चित्तं पञञ्च भावयं आतापी निपको भिक्खु ... सो इमं विजटये जटं ति । आचार्य बुद्धघोष ने उपर्युक्त गाथा के व्याकरण स्वरूप विसुद्धिमग्गो नामक महनीय ग्रन्थ की रचना की और महास्थविर को दिखाया। महास्थविर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बुद्धवचन को मागधी में परिवर्तन करने की आज्ञा प्रदान की। उसी समय से लंका द्वीप में महास्थविर बुद्धघोष के नाम से विख्यात हुए। सप्तम परिच्छेद इस परिच्छेद में आचार्य बुद्धघोष द्वारा बुद्धवचनों का सिंहली भाषा से मागधी भाषा में परिवर्तन की कथा वर्णित है। आचार्य बुद्धघोष लंका द्वीप में For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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