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________________ ( १६ ) नहीं है। सच्चसङ्क्षेप के रचयिता धम्मपालथेर हैं, सासनवंस का यह उल्लेख इन्हीं चुल्लधम्मपाल की ही ओर इंगित करता है, क्योंकि यह अट्ठकथाकार आचरिय धम्मपाल के सन्दर्भ में वहाँ विद्यमान न होकर अन्य रचनाकारों के सम्बन्ध में प्राप्त विवरण के साथ सन्निविष्ट हैं । सच्चसङ्क्षेप के रोमन संस्करण में जो निगमन- वाक्य (कोलोफोन) दिया गया है, वह इस ग्रन्थ के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध अट्ठकथाकार आचरिय धम्मपाल को ही अभिव्यक्त करता है । परन्तु इसके सम्पादक ने अपनी भूमिका में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सच्चसङ्क्षेप के रचयिता प्रसिद्ध अट्ठकथाकार और टीकाकार काञ्चीपुर (काञ्जीवरम्) निवासी आचरिय धम्मपाल नहीं हैं, अपितु इसके प्रणेता अभिधम्ममूलटीका के रचनाकार आनन्दाचरिय के शिष्य चुल्लधम्मपाल हैंौं, फिर भी पता नहीं किस उद्देश्य से प्रसिद्ध अट्ठकथाकार एवं टीकाकार आचरिय धम्मपाल को ही दिग्दर्शित करानेवाले इस निगमन - वाक्य को सम्पादक महोदय ने सच्चसङ्क्षेप के रोमन संस्करण के मूल पाठ में रखा है। इस पर उन्होने पाठभेद भी प्रस्तुत किया है कि यह निगमन - वाक्य इन्डिया आफिस लाईब्रेरी में ताड़पत्रों पर विद्यमान मान्डले संग्रह की इस ग्रन्थ की प्रति में विद्यमान नहीं हैं । इस स्थिति में इसे मूलपाठ में रखने का उनका कार्य नितान्त असमीचीन है | सम्पादक ने अपनी भूमिका में यह भी स्पष्ट किया है कि सच्चसङ्क्षेप ग्रन्थ की सिंहली तथा बर्मी लिपियों में प्राप्त कई पाण्डुलिपियों तथा प्रकाशित संस्करणों का अवलोकन करने के पश्चात् ही उन्होंने इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है और पाठों के सन्दर्भ में उत्पन्न शंका के निवारणार्थ इन्डिया आफिस लाईब्रेरी में ताड़पत्र पर प्राप्त मान्डले संग्रह की इसकी प्रति का भी उनके द्वारा अवलोकन किया गया है, किन्तु उन्हीं के अनुसार यह निगमनवाक्य मान्डले संग्रह की प्रति में नहीं है । इस प्रकार उनकी दृष्टि से भी सन्देह उत्पन्न करनेवाले इसको मूल में देना एक प्रकार से 'वदतो व्याघात' ही है। बुद्धसासन समिति, बर्मा, ने अपने संस्करण में न तो इसे मूल में रखा है और न पाठभेद के रूप में । ६ の १. सासनवंस, पूर्वोक्त, पृ० ३१ । २. सच्चसङ्क्षेप, रोमन संस्करण, पूर्वोक्त, पृ० २५ । ३. वहीं पृ० २ । ४. वहीं पृ० २५ । ५. वहीं, पृ० २ । ६. वहीं, पृ० २५ । ७. पृ० ३४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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