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________________ (१४) (ख) युवान्-च्वाङ् द्वारा अपने यात्रा-विवरण में प्रस्तुत काञ्चीपुर के धर्मपालाचार्य-यवान-च्वाङ् ने अपने यात्रा-विवरण में द्राविड़ देश की अपनी यात्रा के प्रसङ्ग में इस देश की राजधानी काञ्चीपुर का वर्णन करते हुए महायान के सङ्घारामों का उल्लेख किया है तथा काञ्चीपुर को बोधिसत्त्व धर्मपाल का निवास-स्थान बताया है। उनके सम्बन्ध में एक लम्बी कथा भी वहाँ पर उन्होंने उद्धृत की है। ये बोधिसत्त्व नालन्दा के आचार्य थे तथा बौद्धधर्म के महायान सम्प्रदाय के अनुयायी थे। ये उपर्युक्त आचरिय धम्मपाल से भिन्न व्यक्ति थे। लगता है कि काञ्चीपुर पहुँचने पर उन्होंने वहाँ के निवसियों से उपर्युक्त आचरिय धम्मपाल के सम्बन्ध में यह कथा-विवरण सुना हो और इसे उन्होंने महायानी आचार्य धर्मपाल से जोड़ दिया हो। इस कथा में धर्मपाल को उस देश के मंत्री के पुत्र के रूप में प्रस्तुत करते हुए वैराग्यवशात् इनके प्रवजित होने का विवरण प्रस्तुत किया गया है, जो वहीं द्रष्टव्य है। ___इसके आधार पर उदान ग्रन्थ के रोमन संस्करण की भूमिका में इसके सम्पादक स्टेन्थल ने इन्हें नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रसिद्ध आचार्य मान लिया तथा रीज-डेविड्स एवं कारपेन्टर ने दीघनिकाय-अट्ठकथा सुमङ्गलविलासिनी के उपोद्घात में इस मत का समर्थन करते हुए यह अभिव्यक्त किया कि आचरिय धम्पाल का जन्म काञ्चीपुर में हुआ था और इन्होंने नालन्दा में अपने लेखनकार्य को सम्पन्न किया। बाद में इन्साईक्लोपीडिया आफ रिलिजन ऐण्ड एथिक्स में उन्होंने अपने पूर्वोक्त विचार को बदलते हुए यह स्थापना की कि युवान्-च्वाङ् पालि के आचरिय धम्मपाल के विषय में कुछ नहीं जानता था और काञ्चीपुर पहुँचने पर वहाँ के निवासियों ने इन्हीं के बारे में उन्हें सूचना दी, जिसे भ्रम के वश से उसने महायानी एवं संस्कृत के आचार्य धर्मपाल से जोड़ कर अपना विवरण प्रस्तुत कर दिया । (ग) अरिमद्दनपुर के धम्मपाल-अरिमद्दनपुर (बर्मा) निवासी भी एक धम्मपालाचरिय हैं, जिनका विवरण हमें गन्धवंस तथा मेबिल बोड कृत 'दि पालि लिटरेचर आफ बर्मा' की भूमिका में प्राप्त है। १. उदान, भूमिका, पृ० ७, रोमन संस्करण, पालिटेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १८८५। २. दीघनिकायअट्ठकथा, भा० १, उपोद्घात, पृ० ८, रोमन संस्करण, पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १८८६। ३. ई० आर०ई०, भाग ४, पृ० ७०१ । ४. पूर्वोक्त, पृ०६७। ५. दि पालि लिटरेचर आफ बर्मा, भूमिका, पृ० ३, आर० ए०एस०, लन्दन, १९०९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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