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________________ श्रमणविद्या- ३ उक्त आधार पर जैन श्रमण परम्परा के उत्स और उसके व्यापक प्रभाव क्षेत्र का ज्ञान होता है। काशी के सन्दर्भ में यह विशेष है कि अन्य परम्पराओं के साथ-साथ श्रमण जैन परम्परा के स्मृति - अवशेष, पुरातत्त्व, जैनपरम्परा की प्राचीनता एवं उसकी व्यापकता के दिग्दर्शन कराते हैं । आज भारत में कहीं भी उत्खनन होता है तो उनमें से प्राप्त होने वाली सामग्रियों में से इस परम्परा के तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की सर्वाधिक मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं। इतना ही नहीं, प्राचीन भारत के तद् तद् स्थानों पर आज भी जैन अवशेष प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। अभिप्राय यह कि वृषभनाथ (ऋषभनाथ) एवं शिव का ऐक्य, तथा २४ तीर्थङ्करों की अक्षुण्ण परम्परा और साहित्यिक, दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में काशी के साथ जैन परम्परा का आदिकाल से अस्तित्व रहा है । ऐतिहासिक दृष्टि से तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का अवदान सर्वाधिक प्रभावशाली रहा है । इस दृष्टि से काशी गौरवान्वित थी और वर्तमान में भी है। २२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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