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________________ २२० श्रमणविद्या-३ जगत के सिरमौर के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्हें मुनि अवस्था में भस्मक व्याधि रोग हो गया था। इस रोग के शमनार्थ अपने गुरू की आज्ञा से यत्र-तत्र भ्रमण करते हुए योगी बनकर वाराणसी आए। उस समय शिवकोटि का शासनकाल था और राजा शिवकोटि ने एक शिवमन्दिर का निर्माण कराया था। उस मन्दिर में प्रचुर मात्रा में नैवेद्य चढ़ाया जाता था। स्वामी समन्तभद्र ने उस मंदिर के पुजारी से कहा कि आप लोगों में किसी में ऐसी सामर्थ्य नहीं है जो उस नैवेद्य को शिवजी को खिला सके। पुजारियों ने विस्मय से कहा-क्या आप ऐसा कर सकते हैं? उन्होंने कहा हाँ, यदि तुम चाहो तो मैं ऐसा कर सकता हूँ। पुजारी ने तत्काल राजा शिवकोटि को सभी वृत्तान्त कहा। राजा शिवकोटि तत्काल उस विचित्र योगी को देखने शिवालय आया और समन्तभद्र से पूछा कि क्या वास्तव में इस नैवेद्य को शिवजी को खिला सकते हैं। समन्तभद्र का सकारात्मक उत्तर पाकर राजा ने सहर्ष आज्ञा दे दी। समन्तभद्र ने कपाट बन्द कर भोजन किया और बाहर आ गए। सभी विस्मय एवं हर्ष से उस विचित्र योगी को देखने लगे। क्रमश: नैवेद्य की मात्रा बढ़ती गई और कुछ दिनों में समन्तभद्र का रोग शमन हो गया तथा नैवेद्य बचने लगा। इस पर पुजारियों को शंका हुई और खोजबीन की। जब उन्हे ज्ञात हुआ कि शिव के स्थान पर यह योगी भोग लगा रहा है तो उन्होनें राजा से शिकायत की। राजा आया और समन्तभद्र से कहा कि हमें सब ज्ञात हो गया है। तुम्हारा धर्म क्या है? तुम सबके सामने शिव जी को नमस्कार करो। उत्तर में समन्तभद्र ने कहा-राजन्। इस मूर्ति में मेरा नमस्कार सहन करने की सामर्थ्य नहीं है। यदि आप आग्रह करेंगे तो मेरे नमस्कार करने पर यह मूर्ति फट जायगी। राजा ने निर्णय दिया कि यह योगी सबके सामने कल शिव जी को नमस्कार करेंगे। रात्रि में समन्तभद्र तीर्थङ्करों की स्तुति करने लगे तभी शासन देवी प्रकट हुई और कहा कि आप चिन्ता न करें। प्रात: काल राजा और प्रजा के समक्ष समन्तभद्र को आज्ञा दी। समन्तभद्र ने तीर्थङ्करों की स्तुति प्रारम्भ की और जिस समय ८वें तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ की स्तुति प्रारम्भ हुई उसी समय शिवमूर्ति फट गई और उसमें से तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ की दिव्य प्रतिमा प्रकट हुई और समन्तभद्र ने नमस्कार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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