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________________ काशी और जैनश्रमणपरम्परा चातुर्याम धर्म (१) सर्वप्रकार के हिंसा का त्याग (२) सर्वप्रकार के असत्य का त्याग (३) सर्वप्रकार के अदत्तादान का त्याग (४) सर्वप्रकार के परिग्रह का त्याग रूप था। इन चार यामों का उद्गम वेदों या उपनिषदों से नहीं हुआ, किन्तु वेदों के पूर्व से ही इस देश में रहने वाले तपस्वी, ऋषि-मुनियों के तपो-धर्म से उनका उद्गम हुआ है। १ पार्श्वनाथ और नागजाति पार्श्व द्वारा नाग-युगल की रक्षा की घटना को पुरातत्वज्ञ और इतिहासज्ञ पौराणिक रूपक के रूप में स्वीकार करते हुए यह निष्कर्ष निकालते हैं कि पार्श्व के वंश का नागजाति के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध था। चूंकि पार्श्वनाथ ने नागों को विपत्ति से बचाया, अतः नागों ने उनके उपसर्ग का निवारण किया। २१९ महाभारत के आदिपर्व में जो नागयज्ञ की कथा है उससे यह सूचना मिलती है कि वैदिक आर्य नागों के शत्रु थे। नागजाति असुरों की ही एक शाखा थी और असुरजाति की रीढ़ की हड्डी के तुल्य थी । उसके पतन के साथ ही असुरों का भी पतन हो गया। जब नाग लोग गंगाघाटी में बसते थे तो एक नाग राजा के साथ काशी की राजकुमारी का विवाह हुआ था। अतः काशी के राजघराने के साथ नागों का कौटुम्बिक सम्बन्ध था। २ नागजाति एवं नागपूजा का इतिहास अभी तक स्पष्ट नहीं है। विद्वानों का अभिमत है कि नागजाति और उनके वीरों के शौर्य की स्मृति सुरक्षित करने के लिए नाग- पूजा का प्रचलन हुआ। पं. बलभद्र जैन ने भारत के दिगम्बर जैनतीर्थ नामक पुस्तक में नाग जाति एवं नाग पूजा को जैन श्रमण परम्परा के सातवें तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ के साथ सम्बन्ध जोड़ते हुए यह संकेत दिया हैं कि सुपार्श्वनाथ की मूर्तियों के ऊपर नागफण का प्रचलन सम्भवतः इसीलिए हुआ कि नागजाति की पहचान हो सके। सर्पफणावली युक्त प्रतिमायें मथुरा आदि में प्राप्त हुई हैं | नागपूजा का प्रचलन पार्श्वनाथ की धरणेन्द्र पद्मावती द्वारा रक्षा के बाद में हुआ है । इसी प्रकार यक्ष पूजा का सम्बन्ध भी धरणेन्द्र पद्मावती से है। द्वितीय शताब्दी में काशी में जैन श्रमणपरम्परा की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण घटना का परम्परागत उल्लेख मिलता है- - आचार्य समन्तभद्र जो जैन दार्शनिक ९. वही, पृष्ठ १०७ २. वही, पृष्ठ १०४ ३. वही पृष्ठ १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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