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________________ ( १९) सज्जनता एवं उदात्तता से ओत-प्रोत है। उन्होंने मुख्य अतिथि को नारिकेल, उत्तरीय के साथ अभिनन्दन-पत्र प्रदान कर स्वागत-अभिनन्दन किया। मुख्य अतिथि श्री रङ्गनाथ मिश्र जी ने कहा कि मैं संस्कृत नहीं जानता, लेकिन संस्कृत से मेरा लगाव है। संस्कृत-भाषा की सेवा करने के लिए मैं तत्पर हूँ। संस्कृत से ही विश्व को ज्ञान मिला है। आप उसे आगे बढ़ाएँ, मैं उसमें सहयोग करने के लिए तैयार हूँ। संस्कृत की धारा में गति लाने के लिए ही इस वर्ष को संस्कृत-वर्ष के रूप में मनाने का प्रयास है। संस्कृत राष्ट्रभाषा बने यह प्रयास होना चाहिए। इसके लिए संस्कृतज्ञों को सैनिक बनना होगा। संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जिसमें थोड़े शब्दों के द्वारा बहुत कहने की क्षमता है। आपने संस्कृत को आगे बढ़ाने के लिए संस्कृतज्ञों को आगे आने का आह्वान किया। प्रो. गङ्गाधर पण्डा ने आगत अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। इसके बाद छ: सूत्रों में चतुर्दिवसीय शास्त्र-सम्भाषणमाला चली, जिसमें देश के अनेक भागों से आये विद्वानों ने अपने शोध-निबन्ध प्रस्तुत किये। व्याख्याताओं में प्रो. पारसनाथ द्विवेदी, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रो. सत्यकाम वर्मा, डॉ. परमहंस मिश्र, प्रो. राधेश्यामधर द्विवेदी, डॉ. शङ्कर जी झा आदि के नाम प्रमुख हैं। १७ फरवरी को अपराह्न ३ बजे व्याख्यानमाला के सम्पूर्ति-सत्र का शुभारम्भ माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा की अध्यक्षता में हुआ। इस सत्र के मुख्य अतिथि महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. राकेशचन्द्र शर्मा थे। प्रो. ब्रह्मदेव नारायण शर्मा ने चार दिनों में चर्चित विषयों का सारांश प्रस्तुत किया। प्रो. राकेश चन्द्र शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि सङ्गोष्ठी के माध्यम से अनेक विद्वानों को सुनने का अवसर मिलता है। आपने कहा कि इस विश्वविद्यालय एवं संस्कृत के विद्वानों के ऊपर भारतीय संस्कृति की रक्षा का गुरुतर भार है। विश्व में इस संस्कृति को लुप्त करने का प्रयास चल रहा है। अपने उद्गार में प्रो.शर्मा ने आगे कहा कि भाषा और संस्कृति को बचाने में हमारा विश्वास साथ देगा। सन्तोष, त्याग और विश्वास के कारण हमारी व्यवस्था बनी है। आज उपभोगवादी संस्कृति के बढ़ने से हमारे देश की संस्कृति प्रभावित हुई है। आज लोग दया और दान में विश्वास न कर भोग में विश्वास कर रहे हैं। यह विघटन की जड़ है। आपने कहा कि पहले व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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