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________________ ( १८ ) मुख्य अतिथि पद से उद्गार व्यक्त करते हुए श्री केशरीनाथ त्रिपाठी जी ने कहा कि संस्कृत भाषा इस देश की प्राण है । हमारे जीवन की हर विधा एवं परम्परा को जीवित रखने का श्रेय संस्कृत को है । विडम्बना है कि यह जिस देश की भाषा है, वहीं इसकी उपेक्षा हो रही है। अमेरिका आदि देशों में जो शोध हुआ है, उससे यह सिद्ध हो गया है कि कम्प्यूटर के लिए संस्कृत से बढ़कर कोई अन्य भाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि शेक्सपीयर एवं कालिदास की तुलना में मैं कालिदास को कई गुना अधिक मानता हूँ। हमारी कमी है कि कालिदास के नाटकों का प्रचार सामान्य जन तक नहीं कर पाये हैं। आयुर्वेद की शिक्षा-प्रणाली को विश्व स्वीकार कर रहा है, वह संस्कृत में है। श्री त्रिपाठी ने अपने को विधि का छात्र बताया। धर्मशास्त्र के इतिहास में आपने म.म. प्रो. काणे की चर्चा की। इसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि न्याय के सम्बन्ध में हमसे ५० प्रतिशत विदेशियों ने लिया है। हममें निषेध की प्रवृत्ति है, यह हमारी कमी है। हमारे देश के दुर्लभ ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ विदेशों में चली गयी हैं, उन्हें लाने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें पथ का निर्माण एवं पथ-प्रदर्शक का काम करना है। इस कार्य को संस्कृत के लोग ही कर सकते हैं। श्री त्रिपाठी ने कहा कि जीवन के व्यावहारिक दर्शन को मैंने कहा है। अपनी पीड़ा को मैंने व्यक्त किया है। प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी के धन्यवाद ज्ञापन एवं सामूहिक राष्ट्रगान के पश्चात् सभा की सम्पूर्ति हुई। इस सभा का सञ्चालन डॉ. राजीव रंजन सिंह ने किया। [घ] चतुर्दिवसीय अखिल भारतीय शास्त्र भाषणमाला - समारोह दि. १४-१७ फरवरी, २००० तक संस्कृतवर्ष के उपलक्ष्य में चतुर्दिवसीय शास्त्रसम्भाषण-माला का आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन समारोह दि. १४ फरवरी, २००० को अपराहण २ बजे से माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ। इसके मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृत मण्डल के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति श्री रङ्गनाथ मिश्र महोदय थे। स्वागत भाषण के क्रम में माननीय कुलपति जी ने कहा कि श्री रङ्गनाथ मिश्र जी विश्व के गौरव हैं। इनका व्यक्तित्व अध्यात्म, विद्या, प्रतिष्ठा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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