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________________ २०० श्रमणविद्या-३ द्वारा निबद्ध आराधनाओं (सूत्रार्थ) को उपजीत्य करके पाणितलभोजी शिवार्य ने अपनी शक्ति से इस आराधना की रचना की। छद्मस्थता या ज्ञान की अपूर्णता के कारण इसमें कुछ प्रवचन-विरुद्ध लिखा गया हो तो विद्वज्जन प्रवचन-वात्सल्य से उसे शुद्ध कर लें। और इस प्रकार भक्ति पूर्वक वर्णन की गई यह भगवतीआराधना संघ और शिवार्य को उत्तम समाधि दे। __ अपने विषय में इस तरह स्वयं शिवार्य के द्वारा प्रदत्त, मात्र यही जानकारी उपलब्ध है। कुछ विद्वानों ने मूलगाथा में कहा गया ‘पुव्वायरियणिबद्धा उपजीवित्ता इमा ससत्तीए' का अर्थ लगाया है - 'पूर्वाचार्यकृत रचना को आधार बनाकर अपनी शक्ति के अनुसार यह ग्रन्थ लिखा।' किन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि यह शिवार्य की एक महत्त्वपूर्ण मौलिक कृति है। और उन्होंने अपनी शक्ति से पूर्वाचार्य निबद्ध और लुप्त आराधना के इस विषय को प्रस्तुत कृति के माध्यम से उपजीवित (पुनर्जीवित) किया है। इस बात की पृष्टि प्रभाचन्द्र कृत 'आराधना कथाकोश' नामक ग्रन्थ में की गई समन्तभद्राचार्य की कथा से भी होती है। जिसमें कहा गया है कि राजा शिवकोटि राज्य त्यागकर मुनिदीक्षा ग्रहण करते हैं तथा सकलश्रुत का अवगाहन करके लोहाचार्य रचित चौरासी हजार गाथाप्रमाण आराधना को संक्षिप्त करके अढ़ाई हजार प्रमाण मूलाराधना की रचना करते हैं। यद्यपि लोहाचार्य कृत आराधना का कोई अन्य प्राचीन उल्लेख नहीं मिलता, अत: यह कथानक कितना प्रामाणिक है, यह तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु पूर्वोक्त कथन का कुछ न कुछ फलितार्थ तो सिद्ध होता ही है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप – इन चार आराधनाओं के प्रति भगवती विशेषण लगाकर परम आदरभाव व्यक्त करके और इन्हीं पूज्य चार आराधनाओं का प्रतिपादन करने वाला 'भगवदी आराहणा' (भगवती आराधना) नामक यह महान् ग्रन्थ लगभग २१६६ गाथाओं और चालीस अधिकारों में निबद्ध है। इसमें चार आराधनाओं को प्रतिपादन का प्रमुख विषय बनाते हुए श्रमणाचार विषयक मुनिधर्म, सल्लेखना, मरण, अनुप्रेक्षा, भावना तथा विविध जैन सिद्धान्तों एवं नीतियों का अच्छा और विस्तृत विवेचन किया गया है। इसका मंगलाचरण इस प्रकार हैं सिद्धे जयप्पसिद्धे चउब्विहाराहणाफलं पत्ते । वंदित्ता अरहते वोच्छं आराहणा कमसो ।।१।। १. भगवती आराधना के विभिन्न संस्करणों में सम्पूर्ण गाथाओं की संख्या अलग-अलग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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