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________________ शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान विरासत से जुड़ने में अपना गौरव माना तथा उनकी मूल परम्परा तथा ज्ञानगरिमा को एक स्वर से श्रेष्ठ मान्य करते हुए कहा मंगलं भगवदो वीरो मंगलं गोदमो गणी । मंगलं कोण्डकुंदाइ, जेण्ह धम्मोत्थु मंगलं ।। (मंगलं भगवान्वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।। अर्थात् तीर्थंकर भगवान् महावीर - वर्धमान मंगलस्वरूप हैं । तीर्थंकर महावीर की दिव्यध्वनि के विवेचनकर्ता तथा द्वादशांग आगमों के रचयिता प्रथम गणधर गौतम-स्वामी मंगलात्मक हैं। आचार्य कुन्दकुन्द जैसे समर्थ अनेक आचार्यों की आचार्य-परम्परा मंगलमय है तथा प्राणिमात्र का कल्याण करने वाला जैनधर्म सभी के लिए मंगलकारक है। १९३ शिलालेखों के अनुसार इनका जन्मस्थान कोणुकुन्दे, प्रचलित नाम कोंडकुन्दी (कुन्दकुन्दपुरम् ) तहसील गुण्टूर है, जो आन्ध्रप्रदेश के अनन्तपुर जिले में कौण्डकुन्दपुर अपरनाम कुरूमरई माना जाता है । इनका जन्म शार्वरी नाम संवत्सर माघ शुक्ल ५, ईसापूर्व १०८ में हुआ था। इन्होंने ११ वर्ष की अल्पायु में ही श्रमण दीक्षा ली तथा ३३ वर्ष तक मुनिपद पर रहकर ज्ञान और चारित्र की सतत् साधना की । ४४ वर्ष की आयु (ईसा पूर्व ६४ ) में चतुर्विध संघ ने इन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया । ५१ वर्ष १० माह और १५ दिन तक उन्होंने आचार्यपद को सुशोभित किया । इस तरह इन्होंने कुल ९५ वर्ष १० माह १५ दिन की दीर्घायु पायी और ईसा पूर्व १२ वर्ष में समाधिमरण पूर्वक मृत्यु पाकर स्वर्गारोहण किया। १ आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ ही उनकी प्राचीनता, प्रामाणिकता और मौलिकता को कह रहे हैं। इन्होंने अपने ग्रन्थों में 'सुयणाणिभद्दबाहू गमयगुरू भयवओ जयओ' कहकर अपने को बारह अंगों और चौदह पूर्वों के विपुल विस्तार के वेत्ता, गमकगुरु (प्रबोधक) भगवान् श्रुतकेवली भद्रबाहु का शिष्य कहा है । भद्रबाहु को अपना गमकगुरू कहने का यही अर्थ है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु कुन्दकुन्द को प्रबोध करने वाले गुरु थे। इसलिए समयसार को भी उन्होंने श्रुतकेवली भणित कहा है, यथा— २ नई १. समयसारः पुरोवाक् (मुन्नुडि) पृ. ३-४, सं. बलभद्र जैन, प्रकाशन- कुन्दकुन्द भारती, दिल्ली १९७८ । २. बोधपाहुड गाथा ६०-६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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