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________________ १८२ श्रमणविद्या-३ ७. अन्त्य मकार के बाद 'इ' और 'ए' होने पर 'ण' का वैकल्पिक आगम होता है। उदाहरण – युक्तम् इदम् > जुत्तं णिमं, जुत्तमिमं, एतत् > एवं णेदं, एवमेदं ८. ‘त्वा' प्रत्यय के स्थान में इअ, दूण और ता होते हैं। उदाहरण - पठित्वा- पढिअ, पढिदूण, पढित्ता। इस तरह यहाँ शौरसेनी भाषा की कुछ विशेषतायें महत्ता और स्वरूप को संक्षेप में प्रस्तुत किया। अब शौरसेनी प्राकृत साहित्य के प्रमुख आचार्यों तथा इनकी प्रमुख कृतियों के प्रतिपाद्य विषयों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत है शौरसेनी प्राकृत के प्रमुख आचार्य और उनका साहित्य शौरसेनी साहित्य के आचार्यों का अनेक दृष्टियों से विभिन्न क्षेत्रों में महनीय योगदान है। भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद उन्होंने सुदीर्घ काल से इस आगमज्ञान की अखण्ड ज्योति को विभिन्न झंझावातों के बीच भी निरन्तर प्रज्वलित रखा। घोर उपसर्गों और अनन्त प्रतिकूलताओं के बीच भी अपने संयममार्ग में दृढ़ रहकर स्व-पर कल्याण एवं इस ज्ञान की अविच्छिन्न परम्परा बनाये रखने की भावना से वे साहित्य साधना में सदा संलग्न रहे। जब हम इन सब आचार्यों के महनीय योगदान का स्मरण करते हैं, तो हृदय गद्गद् और पुलकित हुए बिना नहीं रहता, क्योंकि इनकी महान् संयम-साधना और लोक कल्याण के कार्यों का सीधा परिचय प्राप्त करना तो आज मुश्किल है, किन्तु इन्होंने भावी पीढ़ियों के लिए अपनी ज्ञान-साधना के द्वारा जो अमूल्य विरासत के रूप में विशाल वाङ्मय हमें प्रदान किया है, उसके महनीय साहित्यिक योगदान का अब मूल्यांकन होना आवश्यक है। शौरसेनी भाषा में निबद्ध साहित्य के प्रणेता आचार्यों की लम्बी परम्परा है, जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व सम्बन्धी योगदान का मूल्यांकन एक स्वतंत्र एवं विशाल शोध-प्रबन्ध का विषय है, किन्तु प्रस्तुत निबंध में इसके प्रमुख आचार्यों के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से उनके योगदान के मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। दिगम्बर परम्परा में उपलब्ध शौरसेनी प्राकृत साहित्य के प्रमुख स्रष्टाओं में आचार्य गुणधर, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि, कुन्दकुन्द, शिवार्य, वट्टकेर, यतिवृषभ, स्वामी कुमार (कार्तिकेय), वीरसेन, जिनसेन, देवसेन, नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, वसुनन्दि, पद्मनन्दि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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