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________________ जैनश्रमण परम्परा और अनेकान्त दर्शन १६७ प्रश्न-जैनी नीति तो अनिर्णयात्मक है। वस्तु के किसी एक निश्चित रूप का प्रदर्शन नहीं करती है। दोनों ओर झुकती है अत: संशय के झूले में झूलता हुआ जैननीतिवेदी को कैसे प्रामाणिक माना जा सकता है। समाधान-पदार्थ अनन्तधर्मात्मक है। वे सभी धर्म, अपेक्षा दृष्टि से परस्पर विरोधी जैसे भी दिखाई देते हैं, तब जैन दृष्टि उनमें समन्वय करती है, अत: वह वस्तु की नियामक है इसलिए उसे प्रामाणिक मानना चाहिए। प्रश्न-परस्पर विरोधी एक साथ नहीं रह सकते, अत: वस्तु जिस धर्म वाली हो उसी रूप उसे कहना चाहिए। नित्य को नित्यरूप, अनित्य को अनित्यरूप, एक को एक रूप, अनेक को अनेक रूप ही कहना चाहिए। एक ही वस्तु में नित्यानित्य, एकानेक ऐसा परस्पर विरोधी धर्मों का समन्वय कैसे चलेगा? यह समन्वय काल्पनिक है, असत्य है। उनकी परस्पर विरोध रूप स्थिति ही सत्य है। समाधान—पदार्थ में रहने वाले अनन्त धर्म, वास्तव में विरोधी नहीं है उनमें शाब्दिक विरोध सा प्रतिभासित होता है। जो पदार्थ द्रव्य दृष्टि से नित्य प्रतीत होता है वही समय-समय पर होने वाले अपने परिणमनों से अनित्य प्रतीत होता है। अपेक्षा भेद से दोनों धर्म अविरोध रूप हैं। जो विरोधी हैं वे एक साथ नहीं रह सकते, पर जो एक साथ अपेक्षा भेद से रहते हैं, उन्हें विरोधी कैसे कहा जाय? जो सामान्य से एक हैं, वही अपनी विशेषताओं के भेद में अनेक रूप हैं। सामान्य विशेष अपेक्षा भेद से हैं उन दोनों में भी अविरुद्धपना हैं। यह समन्वय दृष्टि ही वास्तविक सत्य है। अविरोधी रूप से पाये जाने वाले में विरोध मानना ही काल्पनिक है, असत्य है। प्रश्न-वस्तु स्वरूप का प्रतिपादक जैनी अनेकान्त पद्धति में उलझ जाता है। उसकी उल्झन दूर कर उसे किसी एक रूप में ही वर्णन करना चाहिए, वही सत्य होगा? समाधान-ऐसा नहीं है। वस्तु स्वयं अपने गुण पर्यायों में है। उसे ऐसा ही बताना सत्य है। वस्तु वस्तुत: उलझी नहीं है, वह तो अनेकधर्मात्मक ही है। अपने में सुलझी है, स्पष्ट है। उसे विवक्षा भेद से समझा जा सकता है। उसमें समझने का प्रयत्न श्रेयस्कर है। न समझना अज्ञान मात्र है। अज्ञानी ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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