SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्धधर्म में मानवतावादी विचार : एक अनुशीलन ७९ यस्सेते चतुरो धम्मा, सद्धस्स घरमेसिनो । सच्चं धम्मोधिति चागो स वे पेच्च न सोचति ।। सार को सार समझना, असार को असार, धर्माचरण करना, प्रमाद से विरत रहना, सतत जागरूक एवं कृतोद्योग रहना, सत्कर्मों में श्रद्धा रखना, क्षमाशीलता को आयत्त करना तथा शुद्धजीवी होना ही नैतिकता है और यही मानवता के महान् गुण हैं। भगवान् बुद्ध की देशना है कि दूसरों की निन्दा और दूसरों का घात न करें 'अनूपवादो अनूपघातो'। शील, समाधि और प्रज्ञासमुपेत होने पर ही मनुष्य प्रशंस्य होता है। आत्मदमन परदमन की अपेक्षा श्रेयस्कर है। दान्त मनुष्यों में वही श्रेष्ठ है, जो दूसरों के वाग्बाणों को सहता है___दन्तो सेट्ठो मनुस्सेसु योतिवाक्यं तितिखति'। मनुष्य दूसरों को जैसा उपदेश करता है, वैसा उसे स्वयं करना चाहिए–“अत्तना चे तथा कयिरा यथञमनुसासति'। दूसरों के विरोधी बातों पर न तो ध्यान दें और न दूसरों के कृताकृत का अवलोकन करें वरन् अपने ही कर्त्तव्याकर्त्तव्य को देखें। न परे विलोमानि न परेसं कताकतं । अत्तनो व अवेक्खेय्य, कतानि अकतानि च ।। जीवन की परमोत्कर्षता के लिए चित्त प्रणिधान आवश्यक है। चित्त चपल, चञ्चल, दुःरक्ष्य एवं दुर्निवार्य है। ऐसे चित्त को वश में करना कठिन है, परन्तु निष्ठावान् मनुष्य को तो मन पर विजय पाना अत्यावश्यक है। आत्मविजय मानवता को दृढ़ बनाता है। चित्त विशोधन की प्रक्रिया में शरीर और जगत् की नश्वरता, क्षणभङ्गता, जागरूकता, सुविशुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण आदि का सर्वोपरि स्थान है। प्रज्ञाप्रवण एवं ध्यानपरायण साधक निर्वाण के समीप होता है----“यम्हि झानं च पञा च, स वे निब्बान सन्तिके। वीततृष्ण होना मानवता का गुण है। तृष्णा मानव का महान् शत्रु है। तृष्णा के कारण भय एवं शोक होता है, किन्तु जो तृष्णा से मुक्त है उसे शोक - और भय नहीं होता १. ध.प., १८३; २. सु.नि., पृ. ४६। ३. फन्दनं चपलं चित्तं दुरक्खं दुनिवारयं। उनुं करोति मेधावी उसुकारो व तेजनं।। (ध.प., गाथा ३३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy