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________________ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन- विद्या विषयक अनुसंधान की संभावनाएँ ३२३ शोध संभव है । खण्ड-काव्य - परम्परा में संदेश रासक जैसे अनेक काव्य ग्रंथों का सम्पादन एवं विवेचनात्मक अनुशीलन प्रतीक्षित है । तुलनात्मक शोध भी यहाँ संभव है । (घ) नाटक साहित्य - अपभ्रंश के नाटकों पर अद्यावधि दृष्टि ही नहीं गई है । जैन रचनाकारों ने नाट्य विद्या का प्रयोग न किया हो, यह संभव नहीं । प्राकृत की विशिष्ट सट्टक परम्परा अपभ्रंश में कहाँ चली गई ? हिन्दी के रंगमंच को अपभ्रंश से क्या मिला ? अभिनय, वेशभूषा एवं मंच आदि की परम्परा को नियोजित किया जाना इस शोध से संभव होगा। डॉ. हीरालाल जैन ने स्वीकार किया है कि जैन साहित्य में नाटकों की कमी का कारण वस्तुतः जैन मुनियों के विनोद आदि कार्यों में भाग लेने का निषेध ही है । इस तथ्य के सन्दर्भ में नाटक - साहित्य का मूल्यांकन बहुत महत्त्वपूर्ण होगा । (च) मुक्तक रचनाएँ - अपभ्रंश एवं हिन्दी के जैन- मुक्तक साहित्य में हमें जिस 'रहस्यवादी भावधारा' के दर्शन होते हैं, उसने भक्तिकाल एवं आधुनिक छायावादी काव्य को प्रभावित किया है । इस साहित्य में जैन-धर्म का तत्त्वचिन्तन भी समाहित है। कबीर, जायसी, प्रसाद पन्त, निराला आदि की रहस्यवादी चेतना का जैन - मुक्तककारों से तुलनात्मक शोध बहुत उपादेय होगा । जोइन्दु, कनकामर, मुनि रामसिंह एवं सुप्रभाचार्य प्रभृति कवि-चिन्तकों की मुक्तक रचनाओं का ' दर्शन, नीति, समाज-चेतना' आदि के संदर्भ में अनुशीलन आवश्यक है । जैन मुक्तककारों की मूलभूत विशेषता यह है कि वे जैन-धर्म से सम्बद्ध होकर भी साधना में व्यापक एवं उदार दृष्टि रखते हैं । मुक्तक-काव्य को एक दूसरी धारा उपदेशात्मक है, जिसमें दोहा छन्द में गृहस्थों के लिए उपदेश हैं । इस धारा का समाजपरक एवं धर्मपरक शोधात्मक अनुशीलन विशेष उपयोगी रहेगा । दार्शनिक आधार पर भी इस काव्य की परख जरूरी है । (छ) स्फुट रचनाएँ - अपभ्रंश के साहित्य भण्डारों में स्फुट रचनाओं की भरमार है । स्तुति स्तोत्र, पूजा - काव्य से लेकर भावना, कुलक, फागु, रास, छप्पय और विवाह आदि के रूप में और चर्यागीत, चर्यापद आदि रूपों में यह साहित्य १. डा० हीरालाल जैनः भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान, पृ० १७९ । २. डा० रामसिंह तोमर : प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य, पृ० ७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद-४ www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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