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________________ १२२ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन उपर्युक्त जैन व्यापारियों के कार्य-कलापों पर दृष्टिपात करने से निम्नांकित तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है (१) अधिकांश जैन व्यापारी, महाजनी, सर्राफ, दलाली, जवाहरात का व्यापार, कपड़े का व्यापार, तेल, घी एवं अन्य खाद्य-सामग्री का व्यापार करते थे। (२) विदेशी व्यापारी (अंग्रेज, डच, पुर्तगाली आदि) इनसे व्यापार में सहयोग एवं सहायता लेते थे, क्योंकि सत्रहवीं शताब्दी में इस देश के व्यापार पर जैनों का सफल हस्तक्षेप था; इनके सहयोग के बिना कोई विदेशी व्यापारी सफल नहीं हो सकता था। - चूंकि जैन व्यापारी अपने देश की भाषाओं एवं परम्पराओं से परिचित थे, इसलिए विदेशी व्यापारियों को इनसे विशेष सहायता मिलती थी। (३) जैन व्यापारियों की सम्पन्नता का अनुमान इस बात से होता है कि शासक वर्ग भी आवश्यकता पड़ने पर उनसे ऋण लेता था। (४) जैन व्यापारियों की प्रामाणिकता का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि धन की रक्षा और विनिमय सम्बन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर वे शासकों द्वारा नियुक्त किये जाते थे। (५) जैन व्यापारी बहुत ही व्यवहार कुशल होते थे। इन लोगों ने अथक परिश्रम करके न केवल अपने देश के विभिन्न स्थानों पर व्यापार किया बल्कि विदेशों से भी व्यापार किया। इस सन्दर्भ में इनको तत्कालीन मुगल सम्राटों का भी सहयोग मिला । अकबर, जहाँगीर एवं शाहजहाँ इन जैन व्यापारियों एवं साधुओं से काफी प्रभावित थे तथा इनका सम्मान करते थे यद्यपि औरंगजेब एक कट्टर शासक और धार्मिक असहिष्णुता का पोषक था तथापि उन कठिन परिस्थितियों में भी जैनों ने व्यवहार कुशलता का परिचय देते हुए उससे आज्ञा प्राप्त करके अपने धार्मिक कृत्य किये, संघ निकाले और मन्दिर बनवाये । इसी प्रकार, व्यापार आदि में मुगल सम्राटों का सहयोग प्राप्त करते थे। औरंगजेब के समकालीन जैन कवि द्यानतराय ने औरंगजेब के शासन काल की प्रशंसा की है तथा लिखा है कि उसके काल में जैनों को धार्मिक स्वतन्त्रता मिली थी। इससे आभास मिलता है कि औरंगजेब के शासन काल में भी जैनों पर विशेष धार्मिक अंकुश नहीं था। यह इस जाति की व्यवहार कुशलता का परिचायक है। परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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