SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरप्रदेश के कतिपय विशिष्ट जैन व्यापारी ११७ १६३० ई. में बूंदी के राजा राव रतन से भी मिलना पड़ा था। राजा के मुख्य सलाहकार गंगाराम से भी इनको संपर्क बनाना पड़ा था ।• सन् १६१० ई. के आगरा के विज्ञप्तिपत्र में इनका भी नाम आया है।" १६. गुरुवास • ये आगरा के रहने वाले धनी जैन व्यापारी थे। प्रसिद्ध अंग्रेजों के दलाल जादू के ये सम्बन्धी थे५२ तथा अंग्रेजों के प्रतिनिधि के रूप में वीर जी बोरा के पास आते जाते थे। 3 ये एक सम्पन्न महाजन थे तथा ऋणों की वसूली अच्छी तरह से करते थे। संभवतः ये जवाहरात का भी व्यापार करते थे तथा उसकी आपूर्ति करते थे।५४ १७. धनजी ये दिगम्बर-सम्प्रदाय के जैन व्यापारी थे। आगरा में रहकर अंग्रेजी कम्पनी में दलाली का काम करते थे। अंग्रेज कम्पनी के ईमानदार दलाल के रूप में प्रसिद्ध थे। धनजी कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे, अतः अंग्रेजों ने इनकी सेवायें प्राप्त की थी। इस प्रकार, धनजी में दोहरी योग्यता थी, जिसका अंग्रेजों को लाभ मिलता था । अंग्रेज कम्पनी के ऋणों को ये वसूल करते थे। इस संदर्भ में इनको लाहौर आदि स्थानों में जाना पड़ता था। आसफ खाँ से इन्होंने अंग्रेजों का बकाया धन तेरह सौ रुपये प्राप्त किया था, जिसको उसने मूंगा खरीदने पर दिया था।"७ सन् १६२८ ई. में इन्होंने अंग्रेजों के लिए दलाली करने से इंकार कर दिया था, लेकिन उनके भाषिक मार्गदर्शक बने रहे।५८ सन् १६५८ ई० में नागपुर के एक प्रतिमालेख में इनका नाम संघवी धनजी आया है। जिससे पता चलता है कि इन्होंने ४९, विलियम फोस्टर, इंग्लिश फैक्ट्रीज इन इण्डिया चतुर्थ भाग १६३०-३३ (आक्सफोर्ड, १९१०), पृष्ठ ९० । ५०. वही, पृष्ठ ९० । ५१. प्राचीन विज्ञप्तिपत्र , पृष्ठ २५ । ५२. इंग्लिश फैक्ट्रोज इन इण्डिया चतुर्थ भाग, १६३०-३४, पृष्ठ ९० । ५३. इंग्लिश फैक्ट्रीज इन इण्डिया, तृतीय भाग १६२४-२९, पृष्ठ १९० । ५४. वही, पृष्ठ ८६ । ५५. वही, पृष्ठ ३४ । ५६. वही, पृ. २२८ । ५७. वही, पृ. ९४ । ५८. वही, पृ. ४०।। परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014026
Book TitleJain Vidya evam Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1987
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy