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________________ पंचसूत्र महावीर कि उसकी अपनी दृष्टि ही सर्वोपरि न होकर दूसरे की दृष्टि भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इस संदेश से व्यक्तियों एवं राष्ट्रों के मध्य अनुचित सांप्रदायिक संघर्ष समाप्त हो सकता है। आज जितनी भी अशांति और संघर्ष है, उसके प्रति सत्ताग्रह, वर्द्धमान महावीर के, पंचशील सिद्धान्त, महत्वाकांक्षा एवं अहंकार है। यदि विवाद एवं अशान्ति विश्व शान्ति सुख वरद हैं, मंत्र अचूक दुख सान्त। के सभी पहलओं को दष्टिगत रखकर अनेकान्तवाद की मंत्र अचूक दुख सान्त, जीव कल्याणक वृष है, दति से निर्णय करे तो विश्व में व्याप्त अशान्ति का जीओ, जीने दो ध्येय, अहिंसा धर्म सत्र है। वातावरण समाप्त हो सकता है। अनेकान्तवाद के संबंध भाई चारा भव्य, दया करुणा सनेह है. में भगवान महावीर ने कहा कि प्रत्येक वस्तु के अनेक तन-मन मंगल भाव, सुहृद वात्सल्य प्रेम है। सत्य सदा शाश्वत रहा, आत्म स्वभाव स्वरूप, पहलू होते हैं, जब तक उस वस्तु के सभी पहलुओं को ___ निर्विकल्प परमार्थ मय, हित मित प्रिय वच भूप। नहीं देखेंगे, तब तक सत्य को प्राप्त नहीं करेंगे। अतः हित, मित, प्रिय वच भूप, श्रेष्ठतम मित्रभाव है, सत्य और अहिंसा की भूमिका में भगवान महावीर का मिलन सार, शुचि सरल, प्रेयतम श्रेय भाव है। स्याद्वाद-अनेकान्तवाद सार्वभौमिक सिद्धांत है, इसमे सत्यमेव जयवन्त, सांच को आंच नहीं है, लोकहित एवं लोक संग्रह की भावना गर्भित है। सदाचार सम्पन्न, सत्यता जगत पूज्य है। अनेकान्तवाद धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक और वृष अचौर्य की शानशुचि, निष्कपट नर श्रेष्ठ, आर्थिक विषमताओं को दूर करने का अमोघ अस्त्र है। रहे निडर बढ़े आत्मबल, सम्मानित जगज्येष्ठ । दूसरे के दृष्टिकोण का अनादर करना एवं उसके अस्तित्व सम्मानित जग ज्येष्ठ, न भ्रष्टाचार प्रबल है, को अस्वीकार करना ही संघर्ष का मूल कारण है । अतः मृदु ऋजु भाव सुकृत्य, न मायाचार सबल है। संघर्षों को दूर करने हेतु आज के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक अभियान, अचौर्य सुख-शान्ति सदन है, अनेकान्तवाद-स्याद्वाद प्रासंगिक है। निर्भय रहे नर-नारि चौर्य कृत्य तजे शिवम् है। सार रूप में भगवान महावीर की वाणी जो र ब्रह्मचर्य व्रत श्रेष्ठतम, तन-मन स्फूर्ति, सन्तोषी स्व 'दार' में, शील सुमंगल मूर्ति । प्राणीमात्र के कल्याण हेतु कही गई, वह २६०० वर्ष शील सुमंगल मूर्ति, बहिन बेटी माँ तिय है, से अधिक का समय व्यतीत होने पर आज भी मर्यादा संकल्प, जितेन्द्रिय जीवन जय है। कल्याणकारी है। भोग लिप्सा, व्यभिचार, कुदृष्टि पाप तंत्र है, - ५९, श्रीजी नगर, दुर्गापुरा, जयपुर ब्रह्मचर्य व्रत शुचिर, दिया भवि ब्रह्म मंत्र है। परिग्रह का परिमाण कर, अनासक्त धन पंक, सन्तोषी सुखिया सदा, न्याय-नीति नहि शंक। जाति, देह के आश्रित है और न्याय-नीति नहि शंक, उदार उदात्त शुभम् है, देह आत्मा के संसार का कारण है। सुख सम्पत्ति को बाँट, विश्व कल्याण निहित है। इसलिए जो जाति का अभिमान करने 'पंचसूत्र' महावीर, समाज, नर, राष्ट्र सुहित है, वाले हैं, वे संसार से छूट नहीं सकते। 'वीर जयन्ती' दिवस, विमल जग मंगलमय है। “वीरदेशना” से साभार डॉ. विमला जैन, १/३४४,सुहागनगर, फिरोजाबाद महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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