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________________ केवलज्ञानी (सर्वज्ञ) भगवान महावीर - डॉ. अनामिका जैन आज से लगभग २६०० वर्ष पूर्व जैन धर्म के केवलज्ञान की यही विशेषता है। यह सूक्ष्म, अन्तरित इस युग के चौबीसवें तीर्थंकर कालजयी महापुरुष और दूरवर्ती सभी पदार्थों को हाथ पर रखे हुए आवले महावीर स्वामी का चैत्र सुदी त्रयोदशी को बिहार के के समान अत्यन्त स्पष्टरूप से जानता है । सूक्ष्म अर्थात् कुण्डलपुर में राजा सिद्धार्थ व माता त्रिशला के पुत्र रूप दृष्टि से दूर, अन्तरित अर्थात् काल से दूर और दूरवर्ती में जन्म हुआ। यह तो सुविदित है कि महावीर से पहले यानि क्षेत्र से दूर। परमाणु एवं कर्म-वर्गणायें सूक्ष्म हैं, ऋषभादि २३ तीर्थंकर हो चुके हैं तथा वर्तमान में राम, रावण, कृष्ण आदि काल से दूर/अन्तरित हैं और भगवान महावीर का शासनकाल प्रवर्तमान है, जो सुमेरु पर्वत, देव-नरकगति अनेक समुद्र व द्वीपादि क्षेत्र उत्सर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर के निर्वाण काल तक से दूर होने से दूरवर्ती कहे जाते हैं। ये सूक्ष्म, अन्तरित चलेगा। जन्म से ही महावीर अपनी आत्मा के रंग में और दूरवर्ती सभी पदार्थ केवलज्ञान रूपी दर्पण में निमग्न, सांसारिक राग-रंग, मोह-माया के जंजाल से समान रूप से युगपत प्रतिभासित होते हैं। बिना एकसर्वथा दूर रहे और तीस वर्ष की आयु में ही मार्गशीर्ष दूसरे के सम्पर्क में आये प्रतिसमय लोकालोक के सभी कृष्णा दशमी के दिन नग्न दिगम्बरी दीक्षा धारण कर पदार्थ ज्ञान दर्पण में झलकते रहते हैं। मुनि हो गये। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रत्येक पदार्थ की आपने बारह वर्षों तक घोर तपश्चरण किया। भविष्य की पर्याय सुनिश्चित होने से केवली भगवान तत्पश्चात् एक दिन जुम्बिका गाँव के पास ऋजुकूला उन्हें अत्यन्त स्पष्टरूप से जानते हैं। ऐसा नहीं होता तो नदी के तट पर जब शाल्मलि वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अपने ज्ञान में कैसे जानते कि थे, उस शुभ दिवस बैसाख शुक्ला दशमी को आपने मारीचि एक कोड़ाकोड़ी सागर के बाद इसी भरतक्षेत्र पूर्ण रूपेण शुद्ध दशा अर्जित करके अर्थात् चार प्रकार में चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर होंगे। जिनकी के घातिया कर्मों को नष्ट करके केवलज्ञान प्राप्त कर जयन्ती आज हर्षोल्लास से हम मना रहे हैं। लिया। भगवान नेमिनाथ ने भी बारह वर्ष पहले द्वारका पूर्ववर्ती तीर्थंकरों की भाँति केवलज्ञान की प्राप्ति दहन की स्थिति बता दी थी। ऐसी ही सुनिश्चित पर महावीर सर्वज्ञ हुए अर्थात् सम्पूर्ण/परिपूर्ण ज्ञान के भविष्य संबंधी लाखों घोषणाएँ जिनवाणी में भरी हैं, धारक हुए। सम्पूर्ण जगत में लोकालोक में जितने भी जिससे यह स्पष्ट होता है कि जिनेन्द्र भगवान भूत, पदार्थ हैं, उन सभी को उनके सम्पूर्ण गुण और भूत, भविष्य एवं वर्तमान की समस्त पर्यायों को युगपत भविष्य एवं वर्तमान की समस्त पर्यायों (अवस्थाओं) आत्मा से प्रत्यक्ष जानते हैं। यही तो केवलज्ञान एवं सहित एक समय में बिना किसी की सहायता के, सर्वज्ञता की महिमा है, जो जैन दर्शन की विशेषता है। इन्द्रियों के बिना, सीधे आत्मा से प्रत्यक्ष जाना - मनि महावीर ने दीक्षा लेने के १२ वर्ष बाद महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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