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________________ ल्यायमात्रा शुभ आशीर्वाद परस्परोपग्रहोजीवानाम् पंचम काल में जीव का जन्म मिथ्यात्व के ही साथ होता है। महापुरुष जन्म से ही सम्यक्त्व के साथ जन्मते हैं। उसी क्रम में भगवान महावीर ने जन्म लिया और भारत वर्ष को परम अहिंसा, जिसके अंदर सत्य, अटैर्य, अपरिग्रह, संयम छुपा हुआ है, जो जैन दर्शन की निधि हैं, का संदेश दिया है। राजस्थान जैन सभा जयपुर द्वारा वर्ष २००७ में महावीर जयन्ती स्मारिका डॉ. श्री प्रेमचन्दजी रांवका (प्रधान संपादक) द्वारा संपादन कर समाज को नव चेतना एवं आगमानुसार सम्यक्त्व का पोषणा हेतु किए कार्य हेतु आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहने से भी पीछे न रहे सकने के हेतु महावीर की चर्चा के लिए समाज को निर्देशित करना आवश्यक समझता हूँ। वर्ण भेद, पंथ भेद, जाति भेद आदि से परे अगर हम विराट समुदाय, विराट विचार महावीर की विशिष्टता को स्पष्ट कर सके, संकुचित दायरे से परे महावीर भगवान की वाणी को पत्रिका के माध्यम से जन-जन तक पहुँचावें और समाज में संकीर्णता समाप्त हो। जीवमात्र को अभय देकर अहिंसा, प्रेम, वात्सल्य, करुणा को जन्म दें तो महावीर जयन्ती के अर्थ को जान सकेंगे। समाज को प्रभु महावीर ने जो आत्म-ज्ञान के आनंद की अनुभूति का मार्ग प्रशस्त किया है, उसे सहेजे रखना ही महावीर जयन्ती मनाना है। हम अगर बिखरे रहे, पंथवाद, पण्डितवाद में उलझे रहे तो जयन्ती नहीं महावीर को धोका देना ही होगा। आज महावीर के चरणों में समर्पण की अत्यन्त आवश्यकता है। - आचार्य निर्भय सागर, जयपुर महावीर जयन्ती स्मारिका 2007 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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