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________________ सीख - संकलन जीवनोपयोगी कितनी ही बातें नीति शास्त्र के ग्रन्थों में अथवा अनेक कहावतों में उपलब्ध हैं। जन साधारण की जानकारी हेतु उन्हें संकलित किया गया है । आशा है लाभप्रद सिद्ध होंगी। नीतिकार कहते हैं १. मनुष्य जीवन में सुखी रहने के लिए निम्न बातों की आवश्यकता है आय का साधन होना, शरीर का निरोग होना, प्रियवादिनी भार्या का होना, आज्ञाकारी पुत्रों का होना तथा न्यायपूर्वक पैसा कमाने वाली विद्या का होना । २. मनुष्य को विद्यावान, विद्वान तथा विवेकी होना आवश्यक है। विद्या से विनय, नम्रता आती है। विनयी होने पर पात्रता, योग्यता और योग्यता से धन आता है। धन से धर्म किया जाता है। तथा धर्म से सुख प्राप्त होता है। ३. मिट्टी के कच्चे घड़े में जो संस्कार, निशान कर दिये जाते हैं, वे कभी नहीं मिटते। उसीप्रकार बच्चों में जो प्रारंभ में अच्छे विचार या संस्कार भर दिये जाते हैं, वे सदा ही बने रहते हैं, कभी नहीं मिटते । ४. उस पुत्र से कोई मतलब नहीं है, जो न विद्वान हो तथा न धर्मात्मा हो । ५. धन-संपत्ति का, यौवन-युवावस्था का, प्रभुता तथा पद का एवं अज्ञानता का अभिमान करना बुरा है। जहाँ उपरोक्त चारों प्रकार के अभिमान एक ही जगह हों तो कहना ही क्या ? Jain Education International पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ ६. मनुष्य जब तक किसी पद पर है, उसका सभी सम्मान करते हैं। पद से हटने पर उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। जैसे नाखून और बालों का शरीर से अलग हो जाने पर । ७. . नीतिकारों ने निम्न बातों को विश्वास करने योग्य नहीं माना है। नदी में कभी भी बाढ़ आ जाने, शस्त्रधारी का, सींग वाले जानवर का तथा बड़े नाखून वाले प्राणियों का – इनसे कभी भी जीवन समाप्त हो सकता है। ८. राजा, जोगी, अग्नि, जल इनकी उल्टी रीति अर्थात् इनमें बदलाव आने पर सुरक्षित रहना मुश्किल है। ९. मनुष्य निम्न छह अवगुणों को रहते उन्नति नहीं कर सकता - निद्रा, तन्द्रा (ऊँघना), भय, क्रोध तथा आलस्य । १०. सज्जनों का स्वभाव नारियल के समान ऊपर से कठोर तथा अन्दर से नम्र होता है और दुर्जनों का स्वभाव बेर के समान अर्थात् ऊपर से नरम तथा अंदर से कठोर होता है । ११. खल अर्थात् दुर्जन मनुष्यों की विद्या विवाद के लिए, धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को दु:ख के लिए होती है, जबकि सज्जनों की विद्या ज्ञान प्रदान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति निर्बलों की रक्षा के लिए होती है । C - ७६९, गोदीकों का रास्ता, किशनपोल, जयपुर (राज.) महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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