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________________ स्वत: करते हैं। यह जैनाचार की १०वीं प्रतिमा के अनुरूप आचरण है। जहाँ वृद्ध पुरुष रहते हैं उसे बथान कहते हैं। यह परम्परा प्रायः प्रत्येक परिवार में होती है। ९. महावीर के सिद्धान्तों का आधार है अहिंसाअपरिग्रह आत्म-साधना । अहिंसा में भी द्रव्य-अहिंसा के साथ भाव-अहिंसा का विशिष्ट महत्व है। किसी को भावात्मक रूप से पीड़ा न हो, इसका आधार सूत्र है - अविरोध, सहिष्णुता, सद्भाव और आत्मनिष्ठा । महावीर ने अपने जीवन में कभी किसी का विरोध, बहिष्कार, तिरष्कार नहीं किया। मात्र अपनी सत्स्वरूप की बात कहीं, उसी से जो उनके पास गया जो जैसा विद्यमान था, उसे कहा। किसी में फेरफार या परिवर्तन की बात नहीं कही। उन्होंने अपनी ओर से किसी को आमंत्रित नहीं किया। पूछे जाने पर महावीर ने सहज भाव से वस्तु स्वरूप का यथार्थ कथन किया। विरोध बहिष्कार हिंसा सूचक है। उनके जीवनकाल में अनेक एक पक्षीय मत-मतांतर, कथित सर्वज्ञ - तीर्थंकर घोषित हुए, किन्तु उन्होने किसी को चुनौती नहीं दी। जो महावीर से द्वेष रखते थे; उन्हें भी समत्व भाव से देखासत्स्वरूप समझा इस भाव का प्रत्यक्ष में अनुभव होता वैशाली वासियों में महावीर क्षत्रिय काश्यपगौत्री थे। विद्यमान क्षत्रिय काश्यपगौत्री अपने को महावीर का वंशज कहते हैं । महावीर ज्ञातृ-नाथ कुल के थे। विद्यमान जथरिया जाति के व्यक्ति अपने को महावीर को वंशज मानते हैं। अन्य जाति के उन्हें अपना आराध्य मानते हैं, वे जैन नहीं हैं। वे एक दूसरे की मान्यता से परिचित हैं किन्तु परस्पर किसी का विरोध या बहिष्कार नहीं करते। सब के प्रति सद्भाव सहिष्णुता बनाऐ रखते हैं, क्योकि उनके अनुसार विरोध और असद्भाव भावहिंसा है जो महावीर के दर्शन के विपरीत है, असहज है । सब के व्यवसाय अलग हैं, परिस्थितियाँ अलग हैं किन्तु उनमें परस्पर अविरोध-भाव विद्यमान है। अहिंसाभाव अहिंसा के सूत्र विद्यमान हैं। इसी कारण वैशाली में कभी धार्मिक उन्माद रूप संघर्ष विरोध नहीं हुआ। विभिन्न धर्मों के बीच या एक ही धर्म के विविध पक्षों Jain Education International के बीच द्वंद नहीं हुआ, बुद्ध वैशाली के विध्वंस के अप्रत्यक्ष निमित्त बने थे, जो उनकी कर्म भूमि थी। यह जानते हुए भी महावीर और बाद में वैशाली वासियों ने बौद्धों और बुद्ध का विरोध या बहिष्कार नहीं किया, किन्तु सहज रूप से बुद्ध को भुला दिया। बौद्ध स्तूप हैं किन्तु बौद्ध नहीं । महावीर का कोई मंदिर या जैन नहीं, किन्तु वैशाली के लोक जीवन में जन-मन में २६०० वर्ष बाद भी महावीर विद्यमान हैं और आगे अनेक सहस्रों वर्षों तक विद्यमान रहेंगे। यह है अहिंसा का जीवंत व्यवहारिक रूप। जैन कुल में अपने जैन कहने वालों से आग्रह विनम्र अनुरोध है कि वे अपनी ओर देखें और निर्णय करें कि कौन महावीर के दर्शन की यथार्थ भूमि पर खड़ा है। यह कैसा समाज जो मतधारा-विचारधारा, पूजा पद्यति की भिन्नता, साधुओं के व्यक्तित्व की निष्ठा एवं अन्य क्षुद्र कारणों से एकदूसरों को अपमानित या बहिष्कार करता है और शांति की रक्षा हेतु राज्यशासन या पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ता हो । विग्रह एवं विद्रोह, पुरस्कार और तिरस्कार, पक्षपात, गुटबाजी, चालाकी भरी प्रवृत्तियाँ मानव जीवन की भीषण त्रासदी हैं जिसका महावीर से दूर का भी सम्बन्ध नहीं। महावीर की अहिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव वैशाली के जन-जीवन में अनुभूत करना इष्ट है। १०. जीवन का जो सूत्रधार प्रेरणा स्रोत होता है वह जीवन की हर श्वास को स्पंदित करता है। वैशाली ही क्या सम्पूर्ण विहार में चैत्र माह उल्लास पूर्वक मनाया जाता है, जिसमें चैतागीत गाये जाते हैं। चैत्र मास भगवान राम और महावीर का जन्म माह है। महावीर भी चैता में स्मरण किये जाते हैं। एक नमूना, वहाँ की वज्रिका लोकभाषा में। कहवाँ खरौना, बौना खम्भा अशोक बाटे काहे बाटे वासो कुण्ड नगरिया हो रामा इहवाँ खरौना, बौना खम्भा अशोक बाटे, यहाँ बाटे महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/20 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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