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________________ जैन मंदिर से तीन किलोमीटर दूर वासोकुण्ड तक विशेषता इस दृष्टि से सहज परिलक्षित होती है। वैशाली प्रात:काल निकलती है। वासी अतिथियों को कुछ न कुछ खिला कर ही विदा २. दीपावली के दिन, जो महावीर का निर्वाण करते हैं। दिवस है, वहाँ के लोग अहिल्य भूमि जाकर दीपक ७. धर्म और धार्मिकता का आधार सत की जलाते हैं और अपने आराध्य को नमन करते हैं। स्वीकृति पवित्र भाव, पवित्र भावना त्याग और समर्पण ३. शादी-विवाह के अवसरों पर अहिल्य भमि है। यह गुण वैशाली वासियों में विद्यमान हैं । वे गुणग्राही जाकर नमन करते हैं, अगरवत्ती जलाते हैं। हैं और सहज ईर्ष्या भाव से मुक्त हैं। अपने आराध्य को समर्पित हैं। ४. महावीर ने कहा कि सभी जीव समान हैं। व्यक्ति अपने कर्म से छोटा-बढ़ा होता है। सब के मध्य इसका एक प्रमाण है वहाँ के साधनहीन एवं सद्भाव-सहिष्णुता होना अपेक्षित है। इसकी पुष्टि होती साधारण गृहस्थ जीवन चलाने वाले क्षत्रिय परिवारों के है अहिल्य भूमि के सामने प्रति वर्ष श्रावण शक्ला के महामना महानुभाव जिन्होंने अपनी दो वीघा अहिल्य प्रथम मंगल या शनिवार को, जब सभी वर्ण-जातियों भूमि ‘भगवान महावीर' को दान में समर्पित करदी। के व्यक्ति सर्व भेद भूलकर एक झंडे के नीचे महावीर इतना ही नहीं जब वैशाली में प्राकृत शोध संस्थान की एवं अन्य देवताओं की जय बोल कर परस्पर प्रसाद स्थापना का प्रस्ताव आया, तब वहाँ के सामान्य निर्धन भू-स्वामियों ने अदम्य उत्साह के साथ बिना किसी फल वितरण कर खाते हैं। इस जन समूह में पासवान प्रसिद्धि या प्रलोभन के अपनी प्राणप्यारी भूमि दान में (हरिजन) क्षत्रिय, कहार, ब्राह्मण, कुम्हार, मुसलमान, भूमिहार आदि सभी सम्मलित होते हैं और ऊँच समर्पित करदी। इन दान दाताओं में पासवान (हरिजन) नीचगत भेद भूल कर प्रसाद ले-देकर खाते हैं सर्व मुसलमान आदि भी सम्मलित थे। ये दान कर्ता हैं - अभूचक ग्राम वासी सर्व श्री काली साह, जनक राय, समानता और अपनत्व की ऐसी मिशाल दुर्लभ है। महावीर राय, मूसाराय और याकूवमियाँ; फतेहपुर ५. वैशाली के जन जीवन में महावीर के सत् निवासी केशव नारायण सिंह, वासोकुण्ड निवासी सर्वश्री - सत्य स्वरूप, सदाचार, सद्भाव, सहिष्णुता, खेलावनसिंह, दहाउर पासवान, बिजलीसिंह, महावीर अविरोध आदि सिद्धान्तों का विशेष महत्व है। ब्रह्मचर्य पासवान, महावीर सिंह, महेन्द्रसिंह और शांतिसिंह व्रत का व्यापक प्रभाव वहाँ के जन-जीवन में देखने तथा इब्राहिमपुर निवासी श्री नथुनी सिंह। इनमें कोई को मिला। क्षत्रिय, भूमिहार -जथरियों की प्रत्येक भी धार्मिक नहीं था। सभी साधारण गृहस्थ थे किन्तु पीढ़ी में एक-दो व्यक्ति ब्रह्मचर्य व्रत लेते हुए चले आ उनकी दानशीलता के समक्ष हमारा दान-अहंकार सहज रहे हैं। अन्य जातियों में भी इस व्रत का अस्तित्व देखा ही गलित हो जाता है। सभी को नमन । गया। ८. गृहस्थों के आत्म विकास के लिये महावीर ६. जैनाचार के व्रतों में अतिथि संविभाग व्रत ने ग्यारह श्रेणियाँ-प्रतिमाएँ निर्धारित की। इनमें सातवीं का विशेष महत्व है। इसी व्रत के आधार पर श्रमण ब्रह्मचर्य और दशवीं अनुमति त्याग प्रतिमा है। वैशाली चर्या अवलंबित है। वैशाली में परम्परा से 'अतिथि के लोक जीवन में उनका विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक देवो भव:' के अनुसार अतिथियों को देव तुल्य मान परिवार में वृद्ध पुरुष का विशेष सम्मान करते हैं। उसे कर उनका सत्कार किया जाता है। अतिथियों का परिवार से पृथक अकेले में रखकर उसकी सेवा करते सम्मान करने वाली नारियाँ भी शिष्ट-शालीन होती हैं। हैं ताकि वह गृह-गृहस्थी के झंझटों से मुक्त रहे । यथा गंगा नदी के उत्तर और दक्षिण भाग के जन मानस की समय बिना मांगे भोजन-पानी, दवाई एवं सेवा आदि महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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