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________________ १२ प्राचीन भारत के वैश्विक गणतंत्र/प्राणीतंत्र o आचार्य श्री कनकनन्दीजी गुरुदेव गणतंत्र दिवस पर्व मनाने की सार्थकता इसमें अर्थशास्त्र का वर्णन चाणक्य ने विस्तार से किया जिसे है कि हम गणतंत्र का स्वरूप एवं उद्देश्य को जाने-माने, 'चाणक्य के कौटल्य अर्थशास्त्रम्' कहते हैं। सोमदेव प्रचार-प्रसार करें एवं विश्व में गणतंत्र की स्थापना में सूरी ने 'नीति वाक्यामृतम्' में अर्थशास्त्र के साथ-साथ अपनी महती भूमिका अदा करें। गणतंत्र (गण = राजनीति शास्त्र का भी वर्णन किया है। इसीप्रकार व्यक्ति/लोक, तंत्र = शासन/जीवन पद्धति) के अनुसार चाणक्य ने तथा महाभारत में वेद व्यास ने अर्थशास्त्र एवं प्रत्येक व्यक्ति के जो सुव्यस्थित, सुखमय, स्वावलम्बी, राजनीति का विस्तृत वर्णन किया है, परन्तु वर्तमान में स्वतंत्र, परपीड़न से रहित, सार्वभौम आत्मानुशासित मार्शल एवं रॉबिन्स को अर्थशास्त्र का जनक मानते हैं जीवन जीने की कला है, वही गणतंत्र है, लोकतंत्र तथा राजनीति, कानून के प्रणेता सुकरात आदि को मानते है अर्थात् गणतंत्र-जनता के द्वारा, जनता के लिए जनता हैं। तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित अपरिग्रहवाद ही यथार्थ का शासन है। परन्तु प्राचीन भारत के महापुरुषों ने इससे से अहिंसक समाजवाद है। जब अहिंसात्मक समाजवाद भी आगे विश्व के प्राणीमात्र/जीवमात्र के सुख-शान्ति को पूँजीवाद, शोषक वर्ग ने स्वीकार नहीं किया, तब के जो सूत्र दिये हैं, वह प्राणीतंत्र है, जीवतंत्र है। कार्लमार्क्स आदि ने हिंसात्मक पद्धति से इसका प्रचारअविश्वसनीय सुखद आश्चर्य यह है कि वर्तमान के प्रसार किया। वर्तमान का वैश्वीकरण यह कोई नवीन पर्यावरण सुरक्षा, परिस्थिति की, इकोसिस्टम, विश्व- विषय नहीं है। वसुधैव स्वकुटुम्बकम्, परस्परोपग्रहो बंधुत्व, विश्व-प्रेम, विश्व-शांति के नियम भी प्राचीन जीवनाम्, जिओ और जीने दो आदि प्राचीन भारतीय भारत को प्राणीतंत्र की ओर धीरे-धीरे विकास कर रहा सिद्धान्त आधुनिक वैश्वीकरण/विश्वबंधुत्व, संयुक्त है। ऐसा अध्यात्म एवं विज्ञान का समन्वय विश्व के राष्ट्रसंघ आदि के नियमों से भी अधिक व्यापक, उदार लिए सुखावह है। एवं समतापूर्ण है। परन्तु दु:ख का विषय यह है कि ऐसे लोकतंत्र का उद्भव, प्रचार-प्रसार पाश्चात्य महानतम सिद्धान्तों का आविष्कारक भारत आज किसी जगत् में हआ और उसके प्रचारक रूसों, एंजिलो, भी दृष्टि से स्वयं को श्रेष्ठ स्थापित नहीं कर पा रहा है, कार्लमार्क्स, अब्राहिम लिंकन, लेनिन आदि को मानते प्रस्तुतीकरण नहीं कर पा रहा है। विशेष जिज्ञासु मेरे हैं, परन्तु प्रायः ५१२८ वर्ष पहले राजा उग्रसेन ने (आ. कनकनन्दी) द्वारा रचित 'प्रथम शोध-बोधअग्रेयगण की स्थापना की थी और लोकतंत्र के अनुसार आविष्कार एवं प्रवक्ता' आदि का अध्ययन करें। वहाँ शासन व्यवस्था चलती थी। इसीप्रकार भगवान विश्व भरण-पोषण करे जोई, ताकर भारत महावीर का जन्म लोकतंत्र में हुआ था। लिच्छिवि आदि असो होई' अर्थात् जिस राष्ट्र ने विश्व को ज्ञान-विज्ञान, गण थे, चेटक उसके राष्ट्राध्यक्ष थे। महाभारत में तो दर्शन-अध्यात्म, गणित, अहिंसा, विश्वशान्ति, विस्तार से लोकतंत्र का स्वरूप, उसकी विकृति और विश्वमैत्री, पर्यावरण सुरक्षा, परस्परोपग्रहो जीवानाम्, विकृतियों को दूर करने के उपाय वर्णित हैं। इसीप्रकार वसुधैव कुटुम्बम्, सर्वजीव सुखाय, सर्वजीव हिताय, महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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