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________________ तीर्थंकर प्रतिमाओं को महिमामण्डित करने के लिए उन पर सुशोभित होते होंगे, लेकिन बड़ा छत्र' लाल चित्तीदार बलुए प्रस्तर में तराशा गया है। यह छत्र अतीव रोचक है। छत्र के मध्य छेद है। प्रथम भाग सादा एक पट्टी के बाद सोलह पद्म पत्र तथा बीच लघुपत्र, इन सभी भीतर की ओर बनाया गया है। तत्पश्चात् सादी पट्टी, उसके बाद बाईस पद्मपत्र, इनके बीच तीन लघुपत्र बाहर की तरफ दर्शाये गये हैं । तदुपरान्त कल्पलता का अंकन है। इसके बाद हारयष्टि जो गुप्तकालीन कंकाली टीले की तीर्थंकर मूर्तियों के प्रभामण्डल पर मिलती है, वैसी ही बनी है। इस हारयष्टि के मध्य छह भिन्न-भिन्न प्रकार के पुष्प सुशोभित हैं। इससे आगे का सादा है । तदुपरान्त रत्नाकार (डायमण्ड शेपड) मोटी माला से अंतिम पूरे भाग को संवारा गया है और बीच में आठ विभिन्न प्रकार के पुष्पों को गूंथा हुआ पाते हैं। छत्र इसप्रकार कुल आठ अलंकरण पंक्तियों से समलंकृत है। यह भव्य छत्र किसी बड़ी तीर्थंकर प्रतिमा पर सुशोभित किया गया हो, लेकिन अधिक सम्भावना है कि जैन स्तूप की हर्मिका के ऊपर इतना दिव्य छत्र शोभायमान रहा हो। ७ स्मिथ महोदय ने इसे छापा, इसके बाद हिन्दी में यह प्राप्त होने के ११८वें वर्ष में प्रस्तुत स्मारिका में प्रथम बार प्रकाश में आ रहा है। यह अंलकृत छत्र तीसरी शती ईस्वी की रचना अलंकरण-सजावट की शैली के आधार पर प्रतीत होती है, जो अनभिलिखित है | ॥इति ॥ सर्पया, २२३/१०, रस्तोगी टोला, राजा बाजार, लखनऊ (उ.प्र.) २२६००३ संदर्भ - १. रा. संग्र. मथुरा ४८.३४२६ अर्द्ध आयागपट्टचौबियापाड़ा देखे चित्र - १ मथुरा, जिते. कैटालग आफ जैनएन्टीक्टीज प्लेट २१ / २००३ मथुरा २. रा. संग्र. मथुरा संख्यक ओ. एम. इस हेतु लेखक पूर्व निदे. जितेन्द्र कुमार का आभारी है। ३. रा. संग्र. मथुरा क्यू-२, देखें चित्र. २ ४. रा. सं. ल. सं. जे. ६६४ पीत रंग प्रस्तर का छत्र खण्ड अ. ८० से. मी. ५. तदैव जे-६६५ तदैव आ. ४३५ से. मी. ६. तदैव जे - ६६६ लाल चित्तीदार प्रस्तर आ १ मी ४७५ से. मी. देखे चि. ३ ७. वी. सी. स्मिथ, जैन स्तूप एंड अदर एंटीकटीज प्लेट २३ पृ. २८ इला. १९०३ दो छोटे कंकाली टीला तथा बड़ा छत्र जेल माउड़ से फरवरी १८८९ में प्राप्त हुए हैं। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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