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________________ वाल्मीकीय रामायण से अत्यधिक भिन्न है । राम, लक्ष्मण अनेक राजाओं को परास्त करते हैं एवं उनकी कन्याओं को विवाह में स्वीकार करते हैं। सीता हरण का प्रसंग भी कुछ अन्तर के साथ वर्णित है । चन्द्रनखा और खरदूषण के पुत्र शम्बूक ने सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति के लिए १२ वर्ष तक साधना की और जब वह उसे प्राप्त होता है, तभी संयोगवश वहाँ पहुँचे हुए लक्ष्मण उस खड्ग को उठाकर शम्बूक का सिर काट देते हैं। चन्द्रनखा विलाप करने के पश्चात् राम-लक्ष्मण की पत्नी बनने का प्रस्ताव भी रखती है। शम्बूक वध की सूचना खरदूषण एवं रावण को मिलती है, तो वे युद्ध के लिए आते हैं। रावण सीता पर आसक्त होकर उसका हरण कर लेता है। राम और सुग्रीव की मित्रता वृतान्त के अन्तर्गत राम साहसगति को मारकर सुग्रीव को उसका राज्य व पत्नी लौटाते हैं और सुग्रीव अपनी १३ कन्याओं को उन्हें समर्पित करते हैं। हनुमान लंका जाकर सीता का संदेश लाकर राम को देते हैं। युद्ध वर्णन के अन्तर्गत भी कई अंतर दिखाई देते हैं। सीता का भाई भामण्डल भी युद्ध में भाग लेता है। रावण बहुरूपा विद्या को सिद्ध करके सीता को धमकी देता है कि राम का वध करके वह सीता के साथ अवश्य रमण करेगा। किन्तु सीता का राम के प्रति अटल प्रेम देखकर वह स्वयं ही (राम को युद्ध में हराने के पश्चात् ) उसे सौंपने का निश्चय करते हैं। लंका में प्रवेश करके राम सर्वप्रथम सीता से मिलते जाते हैं। सीता के साथ राम लंका में छह वर्ष तक निवास करते हैं। अयोध्या में नारद कौशल्या को दुःखी देखकर लंका में आकर राम, लक्ष्मण, सीता से उनके दुःख का वर्णन करते हैं। राम पुष्पक विमान पर आरुढ़ होकर अयोध्या लौटते हैं। राम राज्याभिषेक के पश्चात् लक्ष्मण शत्रुघ्न आदि राजाओं को इच्छित देश प्रदान करते हैं। राम, सीता जिन मन्दिरों में पूजा-उपासना करते हैं। कुछ प्रजाजन राम से सीता विषयक अपवाद का निवेदन Jain Education International करते हैं, यह समाचार लक्ष्मण को मिलने पर वे उन सभी दुष्टों को नष्ट करना चाहते हैं, किन्तु राम लोकापवाद के कारण सीता के त्याग का निश्चय कर लेते हैं । वे कृतान्तवक्त्र सेनापति को बुलाकर जिन मन्दिरों के दर्शन करने के बहाने से सीता को जंगल में छुड़वा देते हैं । सेनापति सीता से उनके निर्वासन के विषय में विनम्रतापूर्वक निवेदन करता है।' सीता राम को सन्देश है कि जिस प्रकार आपने मुझे छोड़ दिया है, उसी प्रकार जिन भक्ति का त्याग कभी मत करना। सम्यग्दर्शन को न छोड़ें, मुझे छोड़ने से एक जन्म में दुःख होगा, जबकि सम्यग्ज्ञान के न रहने से जन्मान्तरों तक दुःख उठाना पड़ेगा। राज्य, स्त्री आदि प्राप्त होकर नष्ट हो जाते हैं, किन्तु सम्यग्दर्शन स्थिर सुख को देने वाला है। एक बार हाथ में आया हुआ यह रत्न यदि सागर में गिर जाये जो पुनः प्राप्त नहीं हो सकता ? - वन में राजा वज्रजंघ द्वारा पूछे जाने पर सीता अपने निर्वासन के विषय में कहती है कि मेरे पति ने यश की रक्षा के लिए मुझे वन में छोड़ दिया - चिन्तितं ममे ततो भर्त्रा प्रेक्षापूर्वविधायिना । लोकस्वभाव वक्रोऽयं नान्यथा याति वश्यताम् ॥६९॥ वरं प्रियजने त्यक्ते मृत्युरप्यनुसेवितः । यशसो नोपधातोऽयं कल्पान्तवस्थित ॥ ७० ॥ साहं जनपरीवादद्विदुषा तेन बिभ्यता । संयक्तता परमेऽरण्ये दोषेण परिवर्जिता ॥७१॥ विशुद्धकुलजातस्य क्षत्रियस्य सुचेतसः । विज्ञातसर्वशास्त्रस्य भवत्येवेदमीहिमत् ॥ ७२ ॥ - पद्मपुराण ९८ ६९-७२ राम के लिए सीता वियोग अत्यधिक कठिन था । यद्यपि आठ हजार रानियाँ उसकी निरन्तर सेवा कर रही थीं । सहस्रैरष्टभिः स्त्रीणां सेव्यमानोऽपि सन्ततम् | वैदेही मनसा रामो निमेषमपि नात्यजत् ॥ ९९. १०८ वज्रजंघ के राजमहल में दोनों कुमारों लवण, महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/43 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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