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________________ सेवन, शिकार करना, चोरी करना और परस्त्री सेवन। के समग्र जीवन की ऐसी-ऐसी घटनायें हैं जो मानवीय ये सातों दुर्व्यसन दुःखदायक हैं, पाप की जड़ हैं और मूल्यों का उद्घाटन करती हुई अत्यन्त सशक्त शैली में कुगति में ले जानेवाले हैं। आत्मा से परमात्मा बनने की कथा कहती हैं। पाठक इनके अतिरिक्त अन्याय, अनीति और अभक्ष्य उन्हें पढ़कर यह प्रेरणा लेते हैं कि हम अपने मानवीय का सेवन न करना भी मानवीय मूल्यों में सम्मलित हैं। गुणों को इसतरह विकसित करें ताकि पुनर्जन्म में हमारी काम, क्रोध को जीतना इन्द्रियों के विषयों के आधीन अधोगति न हो और कालान्तर में हम यथाशीघ्र इस न होना भी मानवीय मूल्यों के अन्तर्गत आते हैं। मानव संसार सागर से पार होकर अनन्तकाल तक मुक्ति महल के सकारात्मक मूल्यों में दया, क्षमा, निरभिमानता, में जाकर रहें। सरलता, निर्लोभता, पवित्रता, सत्यता, संयमित जीवन . जैनपुराणों के कथनानुसार मानवीय मूल्यों की का होना मानव के प्राथमिक कर्तव्यों में आते हैं। मर्यादा केवल मानव के हितों तक ही सीमित नहीं होना इन सबकी चर्चा प्रायः सभी पुराणों में किसी न चाहिए, बल्कि प्राणि मात्र की प्राण रक्षा एवं उनके किसी रूप में मिलती है। सर्वाधिक चर्चित और सुख-दुःख के प्रति करुणा से भरपूर भी होना चाहिए। लोकप्रिय जैन पुराणों में पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, मानवीय पीड़ा और अन्य प्राणियों की पीड़ा को समान आदिपुराण, उत्तरपुराण ऐसे पुराण हैं जो गाँव-गाँव में समझना चाहिए। इसी बात की पुष्टि में मांसाहारियों को प्रतिदिन की शास्त्र सभाओं में पढ़े-सुने जाते हैं। इन मार्गदर्शन देते हुए कहा गया है -- सभी पुराणों में मानवीय मूल्यों की महिमा कथानायकों मनुज प्रकृति से शाकाहारी, मांस उसे अनुकूल नहीं है। के आदर्श चरित्रों के माध्यम से गाई गई है। जैसे पद्मपुराण पशु भी मानव जैसे प्राणी, वे मेवा फल-फूल नहीं हैं। में आदर्श एवं आज्ञाकारी पुत्र के रूप में भगवान राम, वर्तमान मानवीय मूल्यों का दंभ भरने वाले अनेक भातृ प्रेम के लिए समर्पित त्याग की मूर्ति नारायण राजनेता, समाजसेवक और धर्मगुरु भी जीव-जन्तुओं लक्ष्मण और उनके अनुज भरत तथा राम की आदर्श के प्राण पीड़न के प्रति अत्यन्त निर्दय देखे जाते हैं। माता कौशल्या, पति की सहगामिनी सती सीता यद्यपि जैन पुराणों में भी आरंभी, उद्योगी और विरोधी मानवीय मूल्यों के ज्वलन्त उदाहरण हैं। हरिवंशपुराण हिंसा पर पूरी तरह प्रतिबन्ध नहीं है; परन्तु संकल्पी हिंसा में तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ, नारायण श्रीकृष्ण तथा का तो सम्पूर्ण रूप से न करने की बात अत्यन्त दृढ़ता कौरवों-पाण्डवों के राग-विराग में झूलते विविध रूप से कही है तथा आरंभी, उद्योगी और विरोधी हिंसा से भी मानवीय मूल्यों का दिग्दर्शन कराते ही हैं। बचने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने का उपदेश जैन महापुराण के प्रथम-द्वितीय भाग के रूप में पुराण देते हैं। आदि पुराण और उत्तर पुराण हैं, उनमें मुख्यतः 24 यहाँ ज्ञातव्य है कि सम्पूर्ण जिनागम चार तीर्थंकरों के जीवन चरित्रों का विस्तृत वर्णन हैं साथ ही अनुयोगों में विभक्त है। द्रव्यानुयोग, करणानुयोग, उनके पूर्व भवों का, 63 शलाका पुरुषों के आदर्श चरणानुयोग और प्रथमानुयोग। समस्त पुराण साहित्य चरित्रों का चित्रण है। आदिपुराण में आदि तीर्थंकर प्रथमानुयोग की श्रेणी में आता है। द्वादशांग में 'दृष्टिवाद आदिनाथ और चक्रवर्ती भरत तथा तपस्वी बाहूबली नाम के बारहवें अंग के तीसरे भेद का नाम प्रथमानुयोग महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014025
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 2007
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year2007
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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